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________________ ( ३०६ ) सूरियाभविमाणवासिणो देवा य देवीओ य तेहि साभाविएहि य वेsब्धिपहि य चरकमलपइडाणेहि य सुरभिवरवारिपडिपुन्नेहिं चंदणकयचच्चिएहिं आबिद्धकंठेगुणेहिं पडमुप्पलपिहाणेहि सुकुमालकोमलपरिग्गहिएहि अनुसहस्सेणं सोवन्नियाणं कलसाणं जाव [पृ० २४१ पं० ९] अट्टसहस्सेणं भोमिजाणं कलसाणं सव्वोदएहिं सव्वमहियाहिं सव्वत्यरेहिं जाव सव्बोसहिसिद्धत्थपहि य सव्विदीप जाव-वाइएर्ण महया महया इंदाभिसेपणं अभिसिंयंति । - राय० स० १३५ वहाँ से चक्रवर्ती की सर्वविजय में जाकर और इस प्रकार वे वे सर्व स्थलों में जल, मिट्टी, पुष्पादिक लेकर छेक अन्तिम वे मन्दर पर्वत में जाकर पहुँचे । मंदर पर्वत के भद्रशाल, नंदन और सोमनस वनों में से सुन्दर गोशीर्ष चन्दन आदि सामग्री लेकर छेक अन्तिम वे मन्दर पर्वत पर जा पहुँचे । मन्दर पर्वत के भद्रशाल, नंदन और सोमनस वनों में से सुन्दर गोशीर्ष चंदन आदि सामग्री लेकर वे झपाटा बंध वापस आये और त्वरावाली चाल से वापस सूर्याभविमान में जहाँ सिंहासन के ऊपर स्वयं के स्वामी सूर्याभदेव बैठा था । वहाँ पहुँचे और पहले सामानिक सभा के सभ्य समक्ष इन्द्राभिषेक की सर्व सामग्नी जो उन्होंने विविध स्थल से आयी थी उसे उपस्थित किया । अभिषेक की सर्व सामग्री आ पहुँची। बाद में सूर्यामदेव की सामानिकसभा के चार हजार देव सम्य, उसकी चार पट्टराणियों, दूसरी तीन सभाओं के स्वयं स्वयं के परिवार वाले देव, सात सेनाधिपति, सोलह हजार आत्मरक्षक देव और अन्य भी बहुतसे देव - देवियों - ए सर्व जहाँ, अभिषेक सभा में आकर उस उस सामग्री के द्वारा मोटी धूमधाम से सुर्याभदेव का इंद्राभिषेक किया । [१३६] तप णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स महया महया हूँ दाभिसेए चट्टमाणे अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं नश्चोययं नातिमट्टियं पविरलफुसिरेणुविणासणं दिव्वं सुरभिगन्धोदगं वासं वासंति, अप्पेगतिया देवा हयरयं नदुर भट्टरयं उवसंतरयं पसंतरयं करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं आसियसंमजिओ वलित्तं सुरसं महरत्थतरावणवीहियं करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरिया विमाणं मंचाइमंचकलियं करेंति, अप्पेगइया देवा सूरियाभं विमाणं णाणांविरागोसियं यपडागाइपडागमंडियं करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरिया विमाण लाउलोइयमहियं [पृ० ७+ टिप्पण] गोलीससरसरत्ततं दणदद्दर दिण्णपंगुलितल करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं उवचियचं दणकलसं चंदणघडसुकयतोरणपडिदुधारदेस भागं करेंति अप्पेगतिया देवा सूरियाभं बिमाणं असत्तोसत्तविलवहवग्धारियमलदामकलाचं करेंति, अप्पेगतिया देवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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