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________________ ( २८५ ) मारयित्वा मारयित्वा निशि हल्लविहल्लयोः । क्षेमेण गच्छतोमंत्रीमंडली स्माऽऽह कूणिकः ।।१९३॥ आभ्यां विद्रुतमस्माकं प्रायेण सकलं बलम् । तद् ब्रूत क इहोपायो जये हल्लविहल्लयोः ॥२९४॥ मंत्रिणोऽप्यूचिरे तौ हि जेतुं शक्यौ न केनचित् । अधिरूढौ हि यावत्तं हस्तिनं नरहस्तिनौ ॥२९५।। तस्मात्तस्यैव करिणो बधाय प्रयतामहे । खादिरांगारसंपूर्णा कार्यतांपथि खातिका ।।२९६।। छादयित्वा च वारीच दुर्लक्ष्या साकरिष्यते । तस्यां सेचनको वेशादभिधावन् पतिष्यति ॥२९७॥ चपेशोऽकारपदथ खादिरांगारपूरितान् । खातिकामुपरिच्छन्नां तदागमनवम नि ॥२९८।। अथ हल्लविहल्लावप्यवस्कन्दकृते निशि । निरीयतुः सेचनकाधिरूढौ जितकाशिनौ ।।२९९।। अंगारखातिकोपान्तमेत्य सेचनकोऽपि हि । तां विभंगेन विज्ञाय तस्थौ यतममानयन् ॥३०॥ ततो हल्लविहल्लाभ्यमिति निर्भत्सितः करी। . परस्यकृतज्ञोऽसि कातरो यदभू रणात् ॥३०१।। त्रिशलाका पर्व १०/सर्ग १२ बाद में प्रत्येक दिन की रात्रि में सेचनक हाथीपर चढ़कर हल्ल-विहल्ल कृषिक के सैन्य में आने लगे। और बहुत सैन्य का विनाश करने लगे। क्योकि यह सेचनक हाथी स्वप्न हस्तिकी तरह किसी से भी मारा या पकड़ा नहीं जा सकता था। बहुत सारी सैन्य का विनाश कर हल्ल-विहल्ल कुशल क्षेम वापस चले जाते थे। इस कारण रात्रि में सब सो जाते थे। सब एक दिन कूणिक मंत्रियों को कहायह हल्ल-विहल्ल प्रायः अपनी सब सैन्य को विलुप्त कर दिया। इस कारण उनको जीतने का क्या उपाय है। मंत्रियों ने कहा-जहाँ तक यह नरहस्ति हल्ल-विहल्ल सेचनक हाथी पर बैठकर आता है वहाँ तक वे किसी से भी जीते नहीं जा सकते हैं । अतः अपने को उस हस्ति का वध करना जरूरी है। इस कारण उसके आने के मार्ग में एक खाई करके उसमें खेर के अंगार संपूर्ण रूप से भरना चाहिए। और उस पर आच्छादन करके उसे पुल की तरह खबर न पड़े वैसा करो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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