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________________ ( २६५ ) है आयुज्यमान् ! भमण ! इस प्रकार मैंने धर्म प्रतिपादन किया है। यही निर्गन्ध वचनयावत सत्य और सब दुःखों का नाश करने वाला है। जिस धर्म की शिक्षा के लिए उपस्थित होकर विचरता हुआ निन्थ ( अथवा निग्रन्थी) बुभुक्षा आदि यावत् काम-भोगों के उदय होते हुए भी संयममार्ग में पराक्रम करे। और पराक्रम करता हुआ मनुष्य संबंधी काम-भोगों में विरक्त होता है क्योंकि मनुष्य के काम-भोग अनियत और विनाशी है । ऊपर देवलोकों में जो देवता है वे अन्य देवों की देवियों के साथ मैथूनोपभोग नहीं करते । किन्तु अपनी ही आत्मा से देव और देवियों के भिन्न स्वरूप धारण कर काम क्रीड़ा करते हैं अथवा अपनी देवियों को वश में करके उनको काम-भोगों में प्रवृत्त कराते हैं । यदि इस तप-नियम का इत्यादि सब पूर्ववत् ही है वह व्यक्ति केवलि भाषित धर्म पर श्रद्धा करे, विश्वास करे और उसमें रूचि करे, यह संभव नहीं है अर्थात वह धर्म पर श्रद्धा आदि नहीं कर सकता। निदान का फलधर्म सुनने की अयोग्यता और उसके फल का विवेचन -- तस्सणं तहाप्पगारस्स पुरिसजातस्स तहारूवे समणेवा माहणेवा जाव पडिसुणिजा ? हंता! पडिसुणिजा ? से णं सद्दहेजा पत्तिएज्जा रोएज्जा णो तिण सम? । अभविएण, से ण तस्स सद्दहणत्ताए। से य भवति महिच्छे जाव दाहिणगामी जेरइए आगमेस्साण दुल्लभ बोहिए यावि भवति । एवं खलु समणाउसो तस्स णिदाणस्स इमेतारूवे पावए फलविवागे जंणो संचाएति केवलि पण्णत्तं धम्म सहहित्तए पत्तियत्तए वा रोइतएवा। -दसासु० द १० यदि इस प्रकार केपुरुष को कोई तथा रूप श्रमण या माहण धर्म कथा सुनायें तो वह सुन लेगा-किन्तु यह संभव नहीं है कि वह उसमें श्रद्धा, विश्वास और रूचि करे, क्योकि निदान कर्म के प्रभाव से वह श्रद्धा करने के अयोग्य हो जाता है। वह तो बड़ी-बड़ी इच्छाओं वाला हो जाता है और परिणाम में दक्षिणगामी नारकी तथा जन्मान्तर में दुर्लभ बोधिक होता है। हे आय घ्यमन् ! श्रमण । उस निदान कर्म का इस प्रकार पापरूप फल विपाक होता है कि जिससे वह केवली भगवान के कहे हुए धर्म में श्रद्धा, विश्वास और रुचि की शक्ति भी नहीं रखता। अन्यतीर्थियों और निदान कर्म का फल __ अण्णरुइ रुह -मादाए से य भवति। से जे इमे आरणिया आषसहिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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