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________________ ( २६३ ) उसके समान भर्ता को दे देते हैं। वह उसकी भार्या हो जाती है। वह अपने पति की एक मात्र पत्नी होती है अर्थात् घर में उसकी सपत्नी नहीं होती वह अपने पति की प्रेयसी और बल्लभा होती है। वह रत्नों की पेटी के समान मनोहर तथा प्यारी होती है । __जिस समय वह घर के भीतर और घर से बाहर जाती है तो उसके साथ अनेक दास ओर दासियाँ होते हैं और वे प्रार्थना में रहते हैं कि आपको कौनसा पदार्थ रूचिकर है। धर्म के श्रवण करने की अयोग्यता और उसका फल तीसेणं तहप्पगाराए इत्थियाए तहारूवे समणे माहणे वा उभयकालं केवलि-पण्णत्तं धम्म आइक्खेज्जा, साणं भंते १ पडिसुणेज्जा णो इण? समढे, अमवियाणं सा तस्स धम्मस्स सवणयाए, साय भवति महिच्छा, महारंमा, महापरिग्गहा अहम्मिया जाव दाहिणगामिए णेरइए आगमिस्सए दुल्लभबोहियाचि भवति । एवं साधु समणाउसो! तस्स निदाणस्स इमेयारूवे पाव-कम्म-फलविवागं जं णो संचाएति केवलिपण्णत्तं पडिसुणित्तए । -दसासु० द १० उस इस प्रकार की स्त्री को क्या तथा रूप श्रमण तथा श्रावक केवलिके प्रतिपादित धर्म को को ? हाँ! कहे किन्तु वह उसको सुने-यह बात संभव नहीं वह उस धर्म को सुनने के अयोग्य है ? क्योंकि वह तो उत्कट इच्छा वाली, बड़े-२ कार्य आरंभ करने वाली बड़े परिग्रह वाली, अधार्मिक, दक्षिणगामी नारकी और भविष्य में दुर्लभ-बोधि कर्म के उपार्जन करने वाली हो जाती है । हे आयुष्मन् ! श्रमण ! इस प्रकार निदान कर्म का यह पाप रूप फल विपाक होता है कि उसके करने वाली स्त्री में केवलिभाषित धर्म सुनने की भी शक्ति नहीं रहती। तीसरा निदानसाधु ने किसी सुखी स्त्री को देखकर निदान कर्म का संकल्प किया। ___ एवं खलु समणाउसो। मय धम्मे पण्णत्ते, इणमेव निग्गंथे पावयणे जाव अंतं करेंति। जस्सणं धम्मस्स सिक्खाए निग्गंथे उवहिते विहरमाणे पुरादिगिच्छाए जाव से य परक्कममाणे पासिज्जा इमा इत्थिया भवति एगा एगजाया जाधकिंते आसगस्स सदति । जं सपासित्ता निग्गंथं णिदाणं करेति । दसासु० द १० हे आयुष्मन् ! श्रमण ! इस प्रकार मैंने धर्म प्रतिपादन किया है। वह निर्ग्रन्थ प्रवचन सब दुःखों का विनाश करने वाला है। जिस धर्म भी शिक्षा के लिये उपस्थित होकर विचरता हुआ निम्रन्थ चिन्ता से पूर्व भूख आदि परिषहों को सहन करता हुआ और पराक्रम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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