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________________ ( २६० ) इस प्रकार निर्ग्रन्थ निदान कर्म करके उस स्थान का बिना आलोचन किये उससे बिना पीछे हटे मृत्यु के समय काल करके किसी एक देवलोक में देवत्व से उत्पन्न हो जाता है । महर्द्धिक यावत् चिरस्थिति वाले देवलोक में महर्द्धिक और चिरस्थिति वाला देव हो जाता है। वह फिर उस देवलोक से आयु, भव और स्थिति के क्षय होने के कारण बिना किसी अन्तर के देव शरीर को त्याग कर जो ये महामातृक उग्र और भोगकुलों के पुत्र हैं उनमें से किसी एक कुल में पुत्ररूप से उत्पन्न होता है ।। से णं तत्थ दारए भवति सुकुमाल-पाणि-पाए जाव सरूवे। ततेणं से दारए उम्मुक्क-बालभावे विण्णाय-परिण्णायमित्ते जोवणगमणुप्पत्ते सयमेव पेइयपडिवजति । तस्स णं अतिजायमाणस्स वा पुरओ जाव महं दासीदासं जाव किं ते आसगस्स सदति । --दसासु० द १० जब वह उक्त कुलों से किसी एक कुल में बालक रूप से उत्पन्न होता है तो उसकी आकृति अत्यन्त सुन्दर होती है और हाथ और पैर अत्यन्त सुकुमार होते हैं । तदनन्तर वह बालभाव को छोड़कर विज्ञभाव और यौवन को प्राप्त कर अपने आप ही पैतृक संपत्ति का अधिकारी बन जाता है। फिर वह घर में प्रवेश करते हुए (और घर से बाहर निकलते हुए) अनेक दास और दासियों से घिरा रहता है और वे दास और दासियाँ पूछते हैं कि श्रीमान को कौन-सा पदार्थ अच्छा लगता है। कुमार के धर्म सुनने की अयोग्यता का वर्णन और निदान कर्म के अशुभ फलविपाक का विवेचन तस्सणं तहप्पगारस्स पुरिसजातस्स तहारूवे समणे वा माहणे वा उभओ कालं केवलि-पन्नत्तं धम्ममातिक्खेञ्जा ? हंता ? आइक्खेजा, सेणं पडिसुणेजा णो इण? सम? । अभविए णं से तस्स धम्मस्स सवणाए। से य भवइ महिच्छे महारंमे महापरिग्गहे अहम्मिए जाव दाहिणगामी नेरइय आगमिस्साणं दुल्लह-बोहिए यावि भवति। तं एवं खलु समणाउसो ! तस्स णिदाणस्स इमेतारूवे फल विवागे जं णो संचाएति केवलिपन्नत्तं धम्म पडिसुणित्तए । -दसासु० द १० प्र०-क्या इस प्रकार निदान कर्मवाला भोगी पुरुष तथा रूप श्रमण या माहण से दोनों समय केचलिप्रतिपादित धर्म सुन सकता है । ___ उत्तर- हाँ ! श्रमण था माहण उसको धर्म तो सुना सकते हैं । किन्तु वह निदानकर्म के कारण धर्म सुन नहीं सकेगा। क्योंकि वह उस धर्म के सुनने के योग्य नहीं है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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