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________________ ( २३८ ) उस काल उस सगय में पूर्णभद्रदेव सौधर्मकल्प के पूर्ण मद्र विमान में सुधर्म सभा के अंदर पूर्णभद्र सिंहासन पर चार हजार सामायिक देवों के साथ बैठे हुए थे। वह पूर्णभद्र देव जिस दिशा से आया उसी दिशा में सूर्याभदेव के समान भगवान को यावत् बत्तीस प्रकार की नाट्यविधि दिखाकर चले गये ।। (3) सौधर्मदेवलोक से–मणिभद्र देवका तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेहए। सेणिए राया। सामी समोसरिए । । तेणं कालेणं तेणं समयेणं मणिभहे देवे सभाए सुहम्माए माणिभई सि सीहासणंसि चउहि सामाणियसाहस्तीहिं जहा पुण्णभद्दा तहेव आगमण, नट्ठविहि। एवं दत्ते ७, सिवे ८, बले ९, अणाढिए १० सव्वे जहा पुण्णभहे देवे । -निर० व० ३! अ ६ से १०/पृ. ६० उस काल उस समय में राजगृह नाम का नगर था। उस नगर में गुणसिलक चैत्य था। श्रेणिक नाम के राजा उसमें राज्य करते थे। भगवान महावीर स्वामी राजगृहनगर में पधारे । परिषद् भगवान के वंदनार्थ गयी। उस काल उस समय में माणिभद्र देव सुधर्म सभामें माणिभद्र सिंहासन पर चार हजार सामानिक देवों के साथ बैठे हुए थे। इसी प्रकार दत्त ७, शिव ८, बल ६, अनादृत-इन सभी देवों का वर्णन पूर्णभद्र देव के समान जानना चाहिए । (ड) सौधर्मदेवलोक से श्रीदेवी तेणं कालेणं तेणं समएणं समएण रायगिहे नयरे, गुणसिलए छोइए । सेणिए राया | सामी समोसढे, परिसा निग्गया। तेणं कालेणं तेणं समएण सिरिदेवी सोहम्मेकप्पे सिरिवडिसए विमाणे सभाए सुहम्माए सिरिसि सीहासणंसि चउहि सामाणिय-साहस्सीहिं चउहि महत्तरियाहिं, जहा बहुपुत्तिया, जाव नट्टविहिं उपदं सित्ता पडिगया। नवरं दारियाओ नत्थि। -निर० व ४/ २ पृ. ६२ उस काल उस समय में राजगृह नामक मगर था। उस नगर में गुणशिलक नामक चैत्य था । उस नगरी के राजा श्रेणिक थे। वहाँ श्रमण भगवान महावीर पधारे। परिषद् उनके दर्शन के लिए निकली। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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