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________________ ( २३२ ) क्रमाश्च विहरन् स्वामी ययौ वाराणसी पुरीम् । अभ्य तत्र शक्रेण चवन्दे मुदितात्मना ॥ ३४० ॥ ततो राजगृहे गत्वा स्थितं प्रतिमयाप्रभुम् । ईशानेन्द्रोऽनमद्भक्त्या सुयात्रा प्रश्न पूर्वकम् || ३४१ || गतोऽथ मिथिलापुर्या स्वामी जनकभूभुजा । धरणेन्द्रेण खाsपूजि प्रियप्रश्नविधायिना || ३४२|| - त्रिशलाका० पर्व १० / सर्ग ४ श्लो ३३८ से ३४२ (ख) कोशाम्यां चंद्रसूरावतरणं, वाराणस्यां शक्रःप्रियं पृच्छति, राजगृहे ईशानः – ईशानकल्पेन्द्रः, मिथिलायां जनको राजाधरणश्च - नागकुमारेन्द्रः पूजां कृतवान् । - आव० निगा ५१६ / मलय टीका जब भगवान् महावीर का कौशाम्बी पदार्पण हुआ, तब भगवान के दर्शनार्थं चंद्र सूर्य मूल विमान सहित आये। इस प्रकार वाराणसी में शकेन्द्र का राजगृह में ईशानेन्द्र का और मिथिला में नागकुमारेन्द्र का दर्शनार्थं आवागमन हुआ । (ख) ग्यारहवें चतुर्मास - वैशाली में - .१ वेशालिवास भूयाणंदो । आव० निगा ५१७- - पूर्वार्ध मलयटीका - Xxx तत्र भूतानन्दो - नागकुमारेन्द्रः प्रियं पृच्छति, ज्ञानं व व्यागृणोति, यथा भगवन् ! स्तोक काल मध्ये केवलज्ञानमुत्पत्स्यते । .२ भूतानन्दो नागराजस्तत्रेत्याऽवन्दत प्रभुम् । आसन्नं केवलज्ञानं समाख्याय जगाम च ॥ - त्रिशलाका० पर्व १० / सर्ग ४ / श्लो Jain Education International वैशाली के ग्यारहवें चतुर्मास में जब भगवान् प्रतिमा में स्थित थे उस समय भूतानंद नामक नागकुमारेन्द्र ने आकर भगवान् को वंदना की और भगवान् को केवल ज्ञान नजदीक है ऐसा कहकर चला गया । (ग) हरिनामक विद्युतकुमार के इन्द्र का आगमन - .१ आलभियाए हरिविज्जू जिणस्स भत्तीह वंदिउं एह । भयवं पियपुच्छा जिय उवसग्गन्तिथेषमवसेसं ॥ ૩૪ For Private & Personal Use Only - आव० निगा ५१४ www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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