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________________ ( २२५ ) मेवार्थमाह- जंभियगामे नाणस्स उप्पया वागरेइ देविंदो। मिढियगामे चमरो वंदण पिय पुच्छणं कुणइ। --आव० निगा ५२३ टीका-जृम्भिकग्रामे देवेन्द्रः शक्रो ज्ञानस्योत्पादं व्यागृणाति, तथा मिण्ढिक ग्रामे अमरो वंदनं प्रियपृच्छनं करोति । छद्मावस्था का बारहवां चतुर्मास संपन्न कर भगवान जम्भिक ग्राम पधारे। वहाँ से विहार कर मिण्डिक ग्राम पधारे । जम्भिक ग्राम में शकेन्द्र आया था तथा मिण्डिक ग्राम में चमरेन्द्र आया था। .६ ददुरदेव का आगमन तेण कालेण तेण समएण समणे भगवं महावीरे चउदसाहिं समणसाइस्सीहि जाव सद्धिं पुव्वणुपुविचरमाणे, गमाणुगामं दूइजमाणे, सुहंसुहेण विहरमाणे जेणे वं रायगिहे णयरे, जेणे व गुणसीलए चेइए तेणे व समोसढे । । तेण कालेण तेण समएण सोहम्मे कप्पे दददुरवडिंसए विमाणे सभाए सुहम्माए दुरंसि सीहासणंसि दद्दुरे देवे चउहिं समाणियसाहस्सीहिं विउहि अग्गमहिसीहिं, तिहिं परिसाहिं, एवं जहा सुरियाभे जाव दिव्वाइ भोगभोगाई विहरइ। इमं च ण केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विपुलेण ओहिणा आभोएमाणे आभोएमाणे जाव नहविहिं उवदं सित्ता पडिगए जाव सुरियाभे। -नाया० श्र १/अ १३ उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर चौदह हजार साधुओं के साथ विचरते हुए -एक गाँव से दूसरे गाँव जाते हुए, सुख-सुखे विहार करते हुए जहाँ राजगृह नगर था घोर गुणशील उद्यान था। वहाँ पधारे । उस काल उस समय में सौधर्म कल्प में दर्दुरावतंसक नामक दिमान में, सुधर्म नामक सभा में दर्दुर नामक सिंहासन पर, ददुर नामक देव चार हजार सामानिक देवों, चार अग्रमहिषियों और तीन परिषदों के साथ अर्थात् अपने संपूर्ण परिवार के साथ, सूर्याभ देव के समान दिव्य भोगीपभोग भोगता हुआ विचर रहा था। उस समय उसने इस संपूर्ण जंबूद्वीप को अपने विपुल अवधि ज्ञान से देखते २ राजगृह नगर के गुणशील उद्यान में भगवान महावीर को देखा। तब वह परिवार के साथ भगवान के पास आया। और सूर्याभदेव के समान नाट्यविधि दिखलाकर वापस लौट गया। २६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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