SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २२२ ) चतुर्मास की समाप्ति के बाद जब भगवान ज भकग्राम पधारे। वहाँ शकेन्द्र आया और नाट्य-विधि दिखाकर बोला कि हे जगद्गुरु ! थोड़े दिन बाद आपको केवलज्ञानकेवलदर्शन समुत्पन्न होगा। (ग) हस्तिशीर्ष नगर में इन्द्र का आगमन ततो निग्गतो हथिसीसं नाम गाम गतो, xx x | ताहेसको आगतो पुच्छइ-जत्ता भे? जवणिज्जं च भे? अव्वावाहं च भे? इति, वंदित्ता पडिगतो। -आव• निगा ५०६-मलय टीका हस्तिशीर्ष नगर में शकेन्द्र का आगमन हुआ। भगवान महावीर को वंदन-नमस्कार किया। (घ) छद्मस्थावस्था में थूणा सन्निवेश में भगवान के पास इन्द्र का आवा गमन - (क) मलयटीका- x x x । सामीवि थूणागसंनिवेसस्स बाहिं पडिम ठितो, तत्थ सो सामी पेच्छि ऊण चिंतेइ, अहो मे पलालं अहिजिय, एएहिं लक्खणेहिं जुत्तो कि एयारिसो समणोहोइ? ता अलाहि भयामि एयं, इतो य सको देवराया पलोएइ-अज कहि सामी विहरइ १ ताहे पेच्छति सामि तं व पूसं, ततो आगतो सामि वंदित्ता भणइ-भो पूसो! तुम लक्खणं न याणसि, एसो अपरिमियलक्षणो, ताहे सक्कोअभितरंलक्खणं वण्णेइ, रुधिरं गोक्षीरगौर, मित्यादि, शास्त्रं न भवत्यतीक, एसधम्मवरचाउरंतचक्कवट्टी देविंदनरिंदमहितो भवियजणकुमुयाणंदकारओ भविस्सइ । x x x । अभिहितसंग्रहणायेदमाह-थूणाए बहिं पूसोलक्खणमभितरे यदेविंदो। -आव नि/गा ४७२ टीका-थूणायां सन्निवेशे बहिर्भगवान् प्रतिमास्थितः, पुष्पोलक्षणं निरीक्षितवान् , अभ्यन्तरं चलक्षणं देवेन्द्रोऽचकथत् । ___ (ख) अथ दूतमुपैत्येद्रो जिनेन्द्र प्रतिमास्थितम् । अवदन्त महामृद्ध या तस्य पुष्पस्य पश्यतः ॥३६॥ शक्रं पुष्पं बभाषे च किं तु शास्त्राणि निन्दसि । तत्कारकांश्च किं तैहि व मृषा भाषितं किल ।।३६२।। इन्द्राश्चतुःषष्टिरपि स्वामिनोऽस्य पदातयः। कियन्मात्रं चक्रिणो स्त येयः फलमभीप्ससि ॥३६६।। -त्रिशलाका पर्व १०/सर्ग ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy