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________________ ( २१८ ) देवों के मध्य में खड़ा हुआ प्रधान सुर्याभदेव उठा। उठकर पादपीठका पर खड़ा हुआ। खड़ा होकर बीच में नहीं सिलाई किया हुआ-ऐसा एकपट साड़ी के वस्त्र का उत्तरासन (मुख की यवना) कर भगवान के सम्मुख वहीं सभा में सात आठ पैर गया, जाकर बायें घुटने को संकोच कर, धरती पर स्थापित किया, दाहिने घुटने को खड़ा रखकर कुछ नीचे नमा हुआ-दोनों हस्त के दशों नखों एकचित्त कर हाथ जोड़ सिर पर आवत कर यावत् नमोत्थूण पाठ का पूरा आचरण किया । उन वहाँ रहे भगवंत को यहाँ रहा हुआ मैं वंदन करता हूँ। मुझे यहाँ रहे हुए को भववंत आप देखते हो-ऐसा कहकर वन्दन-नमस्कार किया। .२ ईशानेन्द्र का (क) तेण कालेण तेण समएण रायगिहे नामं नगरे होत्था-वण्णओ जाव परिसा परज्जु वासइ ॥२६॥ तेण कालेण तेण समएण ईसाणे देविंदे देवराया ईसाणे कप्पे ईसाणघडेसए विमाणे xxx । - जाव दिव्वं देविड्ढि दिव्वं देवजुतिं दिव्वं देवाणुभागं दिव्वं बत्तीसहबद्ध नविहिं उवदं सित्ता जाव जामेव दिसि पाडब्भूए, तामेव दिसि पडिगए। भग० श ३/उ १ सू. २६, २७ उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर मोका नगरी के नंदन नामक चैत्य से बाहर निकलकर विहार करते हुए राजगृह नगर पधारे । उस काल उस समय में ईशानेन्द्र भगवान के पास आकर वंदन नमस्कार किया। बतीस प्रकार के नाटक दिखाकर वापस अपने स्थान चला गया । (ख) तत्तो अ पुरिमताले वग्गुर ईसाण अञ्चए महिमं । -आव• निगा ४६०/पूर्वार्ध मलय टीका-ततो भगवान् पुरिमतालपुरं गतः तत्र वग्गुरः श्रेष्ठी मल्लिजिनाय तन प्रतिमामको गच्छन् ईसाण इति प्राकृतत्वाद् विभक्तिलोप ईशानेन ईशान देवन्द्रण भणितः सन् महिमां--पूजां कृतवान् । पुरिमताल नगर में ईशानेन्द्र का आगमन इतश्च भगवान् वीरस्तस्थौ प्रतिमया स्थिरः। अन्तरे शकटमुखोद्यानस्य च पुरस्य च ॥३॥ तत्र वन्दितुमायात ईशानेन्द्रोजिनेश्वरम् । ददर्श वागुरं यान्तं मल्लिबिम्बार्थनेच्छया ॥३२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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