SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २१५ ) १७ – 'ट' वर्ग के पंच अक्षर ( ट, ठ, ड, ढ, ण ) इनके आकार रूप बनाकर सतरहवाँ नाटक बताया । १८ - 'त' वर्ग के पाँच ( त, थ, द, ध, न ) इनके आकार रूप बनाकर अठारहवाँ नाटक बताया । १६. - 'प' वर्ग के पाँच अक्षर ( प, फ, ब, भ, म ) के आकार रूप बनाकर उन्नीसवाँ नाटक बताया । २०० --- अशोक वृक्षाकार, अम्ब वृक्षाकार, जंबू वृक्षाकार, कोसंब वृक्षाकार - ऐसा पलाकार नामक बीसवाँ नाटक बताया । २१ – पद्मलताकार, नागलता ( बेली ) कार यावत् चंपक, अशोक, कुंद, लता इत्यादि लताकार नामक इक्कीसवाँ नाटक बताया । २२ - शीघ्रतापूर्वक नृत्य करना - यह नृत्य विधि नाम का बाइसवाँ नाटक बताया । २६-- धैर्यता से नृत्य विधि नाम का तेइसवाँ नाटक बताया । २४ - पूर्व में शीघ्र - तत्पश्चात् धीरे— ऐसा नृत्य चौबीसवाँ बताया । २१५ - अचिन्तमान नाम का पचीसवाँ नाटक बताया । २६ - रिभि नामक छबीसवाँ नाटक बताया । २७- अर्चित रिभीत नाम का सताइसव नाटक बताया । २५- आरंभड नाम का अठाइसवाँ नाटक बताया । २६ - भसोल नाम का उन्तीसवाँ नाटक बताया । ३० - अरभड भसोल नाम का तीसवाँ नाटक बताया । ३१ - ऊपर उछलना, नीचे पड़ना, तिरछे कूदना, संकोचंग करना, प्रसरना, जाना, आना, भयभूति होना, संभ्रांत होना, नाम का एकतीसवाँ नाटक बताया । ३२- तब वे बहुत देवकुमार, देव कुमारिका सब एकत्र मिलकर समवसरण किया यावत् दिव्यगीत, नृत्य, वादित्र से प्रवर्तकर, तब फिर वे बहुत देवकुमार देवकुमारिका श्रमण भगवान महावीर जो पूर्व भव में नंद गजा थे वहाँ ११ लाख ८१ हजार मासखमण कर तीर्थंकर गोत्रोपार्जन किया—-वे दसवें देवलोक में देव हुए वह चारित्र | वहाँ से च्यवन किया - ८वीं रात्रि में साहरन हुआ - देवानंदा की कुक्षी से हरण कर त्रिशला देवी की कुक्षी में स्थापित किया - वह जन्म हुआ । मेरुगिरि पर देवों ने अभिषेक किया वह बाल्यावस्था का चारित्र, पाणि ग्रहण ( विवाह ) कामभोग, चारित्र, दीक्षोत्सव चारित्र, दीक्षा ग्रहण तपाचरण चारित्र, केवल ज्ञानोत्पत्ति, चार तीर्थ की चारित्र स्थापना और भविष्यत् में मोक्ष किस प्रकार होगे - यह भी चारित्र अन्तिम बत्तीसवाँ भगवंत के चारित्र नाम का दिव्य प्रधान नाटक बताया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy