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( १७६ ) (थ) संघ से अलग हुआ जमाली-चंपानगरी में आया।
तब भगवान का चंपानगरी में पदार्पण । सोऽन्येा : पुरिचंपायां पूर्णभद्राभिधेवने । श्रीवीरं समवसृतं गत्वाऽवादीन्मदोद्धरः ॥७५॥
–त्रिशलाका० पर्व १०/सर्गसंघ से अलग हुआ जमाली-वीरप्रभु को चंपानगरी में पधारा हुआ जानकर वहाँ गया।
(द) जमाली-भगवान् के शासन से अलग होकर फिर भगवान् के बंपानगरी में दर्शन किये।
तएणं से जमाली अणगारे अण्णया कयाइताओ रोगायंकाओ विप्पमुक्के, हो जाए, अरोए बलियसरीरे, सावत्थीओ णयरीओकोढयाओ चेझ्याओ पडिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता पुव्वाणुपुखि चरमाणे, गामाणुग्गामं दूइज्जमाणे जेणेव चंपाणयरी, जेणेव पुण्णभहे चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छद।
-भग० श६/उ ३३ सू २३० किसी समय जमाली अनगार आहारादि से उत्पन्न रोग से मुक्त हुआ, रोगरहित मौर बलवान शरीर वाला हुआ। श्रावस्ती नगरी के कोष्ठक उद्यान से निकल कर अनुक्रम से विचरता हुआ एवं ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ चंपानगरी के पूर्णभद्र उद्यान में आया।
उस समय श्रमण भगवान महावीर भी वहाँ पधारे हुए थे। (ध) पृष्ठ संपा से चंपा की ओर विहार
(द) कालान्तरेण विहरन् भगवान् सपरिच्छदः। चतुस्त्रिंशदतिशयो ययौ चंपां महापुरीम् ॥१७॥
–त्रिशलाका पर्व १०/सर्ग ६ भगवान श्री वीरप्रभु कालान्तर में विहार करते-करते परिवार के साथ में चौतीस अतिशय सहित चंपापुरी पधारे ।
(न) जमाली अणगार पृथक् होकर पांच सौ अणगार के साथ श्रावस्ती नगर में था। उस समय भगवान् चम्पा नगरी में थे।
तएणं समणे भगवं महावीरे अण्णयाकयाइ पुव्वाणुपुचि चरमाणे (गामाणुगामंदूइजमाणे ) सुहं सुहेणं विहरमाणे जेणेव चंपानयरी जेणेव पुण्ण
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