SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १४२ ) सुरासुरों सेवित श्री वीरप्रभु वहाँ से विहार कर परिवारके साथ पृष्ठचम्पा नगरी पधारे। वहाँ साल नामक राजा और महासाल नामक युवराज-वे दोनों भाई त्रिजगत् के बन्धु श्री वीरप्रभु को वंदनार्थ आये। प्रभु की देशना सुनकर वे दोनों प्रतिबोधित हुए । फलस्वरूप यशोमती और पिठर का गागली नामक पुत्र जो उसका भानेज था । उसका राज्याभिषेक किया। और वे दोनों संसारवास से विरक्त होकर श्री वीर प्रभु के पास से दीक्षा ग्रहण की। कालान्तर में भगवान महावीर विहार करते-करते परिवार के साथ चौत्तीस अतिशय सहित चंपापुरी पधारे। भगवान् की आज्ञा लेकर गौतम स्वामी साल और महासाल साधुओं के साथ पृष्ठ चंपा पधारे। वहाँ गागली राजा ने भक्ति से गौतम गणधर को वंदना की। उसी प्रकार उसके माता-पिता और दूसरे मंत्री आदि पौरजनों ने भी उनको वंदन किया । __ तत्पश्चात् देवकृत सुवर्ण के कमल पर बैठकर चतुर्शीनी इन्द्रभूति ने धर्म देशनादी । उसे सुनकर गागली प्रतिबोधित हुआ। फलस्वरूप स्वयं के पुत्र को राज्य पर बैठाकर स्वयं के माता-पिता सहित उसने गौतम स्वामी के पास दीक्षा ग्रहण की। वह मुनियों से और साल और महासाल से परिवृत्त हुए गौतम स्वामी के साथ भगवान को वंदनार्थ चंपा नगरी की ओर प्रस्थान हुए । अस्तु गौतम स्वामी के पीछे चलते हुए मार्ग में शुभ भावना से उन पाँचों को केवल ज्ञान समुत्पन्न हुआ। सब चंपानगरी में पधारे। उन सबने भगवान को प्रदक्षिणा की। और गौतम स्वामी को प्रणाम किया । तत्पश्चात तीर्थ को वंदन कर वे पाँचों केवली परिषद् की ओर चले । __ गौतम ने उन्हें कहा कि भगवान को वंदना करो। भगवान महावीर बोले किहे गौतम। केवली की आशातना मत करो। तत्काल गौतम ने मिथ्यादुष्कृत किया और उनसे क्षमा-याचना की। गौतम् का अष्टापद पर आरोहण खिन्नोऽथ गौतमो दध्यौ न किमुत्पत्स्यते मम । केवलज्ञानमिह च भवे सेत्स्यामि किं न हि ? ॥१८॥ योऽष्टापदे जिनान्नत्वा वसेद्रात्रिं स सिध्यति । भवेऽत्रैवेत्यर्हदुक्त वक्तृन् सोऽथास्मरत्सुरान् ॥१८१। देवताचाक्प्रत्ययेन तदानीं गौतमो मुनिः । इयेषाप्टापदं गन्तुं तीर्थद्वन्दनाकृते ॥१८॥ तदिच्छां तापसबोधं चाहन् विज्ञाय भाविनम् । भादिदेशाष्टापदेऽहद्वन्दनायाथ गौतमम् ॥१८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy