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________________ ( ११३ ) वह ( हमारे द्वारा की गई भगवद् वंदना आदि ) परभव में और इस भव में पथ्य अंत के समान हित के लिए, सुख के लिए, परिस्थितियों को साधना अनुकूल बना के लिए और मोक्ष के लिए या भव- परम्परा में मोक्षमार्ग में बाधक नहीं होने वाले सुखलाभ के लिए, हमें कारण रूप बनेगीं । - ओव० सू ५२/पृ० ५२, ५३ बहवे उग्गा उग्गपुत्ता भोगा भोगपुत्ता एवं दुपडोयारेणं - राइण्णा खत्तिया माणा भडा जोहा पसत्थारो मल्लई लेच्छई लेच्छईपुत्ता अण्णे य बहवे राईसरतलवर - मार्ड बिय- कोडुंबिय - इब्भ-सेट्ठि- सेणावइ - सत्थवाह-प्पभितयो अप्पेगइया वंदणवत्तियं अप्पेगइया पूयणवत्तियं अप्पेगइया सक्कारवत्तियं अप्पेगइया सम्माणवत्तियं अप्पेगइया दंसणवत्तियं अप्पेगइया कोऊहलवत्तियं अप्पेगइया अस्सुयाई सुणे सामो सुयाई निस्संकियाई करिस्सामो अप्पेगइया मुंडे भवित्ता अगराओ अणगारयं पव्वइस्लामो, अप्पेगइया पंखाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्मं पडिवज्जिस्सामो, अप्पेगइया जिणभत्तिरागेणं अप्पेगइया जीयमेयंति कट्टु पहाया कयबलिकम्मा कय- कोउय-मंगल- पायच्छित्ता सिरसा कंठे मालकडा आविद्धमणि-सुवण्णा कप्पिय-हारद्व-हार-तिसर- पालंबपलंब माण- कडिसुत - सुकय-सोहाभरणा पवरवत्थपरिहिया खंदणोलित्तगायसरीश, अप्पेगइया हयगया अप्पेगइया गयगया अप्पेगइया रहगया अप्पेगइया सिबिया - गया अप्पेगइया संदमाणियागया अप्पेगइया पाय- बिहार - चारेण पुरिसवग्गुरापरिक्खिता महया उक्किट्ठ-सीहणाय- बोल- कलकल-रवेणं 'पक्खुभिय-महासमुद्द- रवभूयं पिव' करेमाणा चंपाए णयरीए मज्झमज्झेणं णिग्गच्छंति, २ ता जेणेच पुण्णभई चेप तेणेव उवागच्छंति, २ त्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदुरसामंते छत्तादीए तित्थवराइसेसे पासंति, पासित्ता जाणवाहणाई ठवेंति, २ त्ता जाणवाहणेहिंतो पश्चोरुहंति, पश्चोरुहित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उबागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति, करेत्ता वदति णमसंति, वंदित्ता णमंसित्ता पच्चासपणे णाइदूरे सुस्सूसमाणा णमंसमाणा अभिमुहा विणणं पंजलिउडा पज्जुवासंति । - ओव० सू ५२ | पृ० ५२, ५३ इस कारण बहुत से उग्र ( आदिदेव के द्वारा स्थापित आरक्ष के वंशज ), उग्रपुत्र ( कुमार अवस्था वाले उग्रवंशी ), भोग ( आदिदेव के द्वारा गुरू रूप से स्थापित व्यक्तियों के वंशज अर्थात पुरोहित ), भोगपुत्र, राजन्य ( भगवान के वयस्यों के वंशज ), राजन्यपुत्र क्षत्रिय ( सामान्य राजकुलीन ) क्षत्रियपुत्र, ब्राह्मण, ब्राह्मणपुत्र, भट ( शूर ), भटपुत्र, योद्धा, १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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