SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (झ) नदिवर्द्धन का आगमन - ( ६४ ) क्रमाच्च क्षत्रियकुंडग्रामं स्वामी समाययौ । तस्थौ समवसरणे विदधे चाथ देशनाम् ||२९|| स्वामिनं समवसृतं नृपतिर्नन्दिवर्धनः । ऋद्ध या महत्या भक्त्या व तत्रोपेयाय वन्दितुम् ||३०|| स त्रिः प्रदक्षिणीकृत्य वन्दित्वा व जगदगुरुम् । उपाविशद्यथास्थानं भक्तितो रखिताञ्जलिः ॥३१॥ वर्धमान तीर्थंकर ग्राम, नगर, आकर आदि में विहार करते हुए क्रमशः क्षत्रिय कुंडग्राम पधारे । वहाँ समवसरण में बैठकर धर्मदेशना दी । त्रिशलाका • पर्व १० / सर्ग ८ भगवान को समवसृत जानकर राजा नंदीवर्द्धन मोटी समृद्धि और भक्ति से भगवान को वंदनार्थं आया । Jain Education International तीन प्रदक्षिणाकर जगद्गुरुओं को वंदन कर भक्ति से अंजलि जोड़कर योग्य स्थान बैठा । (ञ) श्रेणिक राजा और चेलणा देवी भगवान् के समवसरण में तएण से सेणिए राया भंभसारे जाणसालियस्स अंतिए एयमट्ठ' सोचा निसम्म हट्ट तुट्ठ-जाव मजणघरं अणुष्पविसर अणुष्पविसित्ता जाव कप्परुषखे चेव अलंकिय-विभूलिए परिंदे जाव मजणघराओ पडिनिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता जेणेव वेलणादेवी तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता चेलणं देवि एवं वयाली - एवं खलु देवाणुप्पिए ! समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थयरे जाव पुव्वाणुपुव्वि वरमाणे विहरs | तं महष्फलं देवाणुप्पिए ! तहारूवाणं अरहंताणं जाव तं गच्छामो देवाणुप्पिए ! समणं भगवं महावीरं वंदामो नमसामो सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाण मंगलं देवयं वेइयं पज्जुवासामो, एयं णे इहभवे य परभवे य हियाए सुहाए समाए निस्सेयसाए जाब आणुगामियत्ताए भविस्लइ | Xxx ⁄ तरण से सेणिए राया वेल्लणाए देवीए सद्धिं धम्मियं जाणप्पवर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy