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________________ उस काल और उस समय में वाणिज्यग्राम नामक नगर था। वहाँ द्युतिपलाश नामक चैत्य ( उद्यान ) था। वहाँ श्रमण भगवान महावीर पधारे। परिषद् वंदनार्थ निकली। भगवान ने धर्मोपदेश दिया । परिषद् वापिस चली गई । (घ) तेणं कालेणं तेणं समएणं हस्थिणागपुरे णाम णयरे होत्था ।xxx। तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे । परिसा जाव पडिगया।xxx तएणं सा महतिमहालया महश्चपरिसा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयम सोच्चा णिसम्म हह-तुट्ठा समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता जामेव दिसं पाउन्भूया तामेवदिसं पडिगया। -भग श ११/उह/सू ५७, ७४, ८२ उस काल उस समय में हस्तिनापुर नामक नगर था । उस काल उस समय श्रमण भगवान महावीर वहाँ पधारे । जनता धर्मोपदेश सुन कर यावत् चली गई। इसके बाद वह महती परिषद् श्रमण भगवान महावीर से उपयुक्त अर्थ सुनकर और हृदय में धारण कर हर्षित एवं संतुष्ट हुई और भगवान को वंदना-नमस्कार कर चली गई। (च) तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थीणामं नयरी होत्था। वण्णओ। कोहए चेइए, वण्णओ। तत्थणं सावत्थीए णयरीए बहवे संखप्पामोक्खा समणोवासगा परिवसंति ।xxx। तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे। परिसा णिग्गया, जाव पज्जुवासइ। तएणं ते समणोवासगा इमीसे कहाए जहा आलभियाए जावपज्जु वासंति। तएणं समणे भगवं महावीरे तेसिं समणोवासगाणं तीसे य महति० धम्मकहा, जाच परिसा पडिगया। -भगव श १२/उ १ सू १, २ उस काल उस समय में श्रावस्ती नाम की नगरी थी। कोष्ठक नामक उद्यान था। उस श्रावस्ती नारी में शंख प्रमुख बहुत से श्रमणोपासक रहते थे। . . उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर भावस्ती पधारे। परिषद् वंदन के लिए गई। यावत् पर्युपासना करने लगी। भगवान के आगमन को जानकर वे भाषकभी, आलभिका नगरी के भावकों के समान वंदनार्थ गये । पर्युपासना करने लगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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