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________________ .१४ ग्यारहवें चतुर्मास के याद की घटना वाइलो वणिक्-एक घटना (क) नाथोऽथ पालकग्रामे ययौ तत्र त्वदृश्यत । वणिजा वायलाख्येन यात्रायै चलता सता ॥६०३॥ असावशकुनं भिक्षुः क्षिपाम्यस्यैव मूर्धनि । इति हन्तुं प्रभुं पापः स कृष्ट्वाऽसिमधावत ॥६०४॥ सिद्धार्थव्यन्तरस्तस्य स्वयमेवाऽऽच्छिदच्छिरः । –त्रिशलाका• पर्व १०/सर्ग ४ (ख) ततो सामी पालगं नाम गाम गतो, तत्थ वाइलो नाम पणिओ जत्ताए पधावितो सामि पेच्छइ, ततो सो अमंगलं ति काऊणअसिं गहाय पधाषितो एयस्स फलउत्ति, तत्थ सहत्थेण सिद्धत्थेण सीसं छिन्नं । अनुमेवार्थमाह__ वालुय वाइल वणिए अमंगलं अप्पणो असिणा। -आव• निगा ५२१ सुक्षेत्र ग्राम से विहारकर भगवान महावीर पालक ग्राम पधारे। वहाँ वाइल नामक कोई वणिक यात्रा कर रहा था। उसने भगवान को आते देखा। इस भिक्षुक का अपशकुन होने के कारण उसके मस्तिष्क पर खग का प्रहार करना चाहिए। ऐसा विचार कर खग को उठाकर भगवान को मारने के लिए दौड़ा कि उस समय व्यन्तरदेव आकर उसका ही मस्तिष्क छेद डाला। १५. भगवान को वंदनार्थं जानने का उदाहरण .१ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थयरे जाव गामाणुगामं दूइज्जमाणे जाव अप्पाणं भावमाणे विहरइ तए णं रायगिहे नयरे सिंघाडगं तियचउक्क-चचर एवं जाव परिसा निग्गया जाव पज्जुवासइ। -दसासु० अ १०/सू५ ___ उस काल उस समय में धर्म के आदिकर तीर्थकर भगवान महावीर एक गाँव से दूसरे गाँव में विचरते हुए राजगृह नगर के गुण-शिलक उद्यान में पधारे और संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए वहाँ निवास किया । तब राजगृह नगर के शृङ्गारक-त्रिक-चतक-चत्वर आदि मार्गों में अर्थात नगर के दो मार्ग वाले स्थानों में, तीन मार्ग वाले स्थानों में, चार मार्ग वाले स्थानों में और अनेक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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