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________________ ( ७० ) हम उस अर्द्धमागधी भाषा का आदरपूर्वक-ध्यान-स्तवन करते है, जो सबकी है, सर्वशो द्वारा व्यवहृत है, समग्र भाषाओं में परिणत होने वाली है, सार्वजनीन है, सब भाषाओं का स्रोत है। (ख) विहरन भगवान् वीरो ययौ राजगृहेऽन्यदा ॥२५॥ एवमाख्याय भगवान् सर्वभाषाजुषा गिरा। विदधे दुरितप्रत्यादेशनी धर्मदेशनाम् ॥५८|| -त्रिशलाका पर्व १०/सर्ग राजगृह में प्रसन्नचन्द्र राजर्षि का प्रश्नोत्तर के उपरांत भगवान् ने सर्वभाषानुसारी वाणीसे पाप को नाश करने वाली धर्म देशना दी। .३ भगवान् महावीर और आगम .१ समणे भगवं महावीरे अंतिमराइयंसि पणपन्नं अज्झयणाई कल्लाणफलविवागाई, पणपन्न अज्झयणाणि पावफलविवागाणि वागरित्ता सिद्ध बुद्ध । जाव प्पहीणे। सम० सम ५५ श्रमण भगवान महावीर अंतिम रात्रि में पंचावन अध्ययन पुण्यफल के विपाक वाले और पंचावन अध्ययन पाप-फल के विपाकवाले प्ररूपित कर सिद्ध हुए, बुद्ध हुए यावत् सर्व दुःखों से रहित हुए। .२ आयारस्स णं भगवतो सचूलिआगस्स अट्ठारस पयसहस्साई पयग्गेणं पण्णत्ताई। -सम सम० १८/सू ४/पृ० ८५३ टीका-यश्च सचूलिकाकस्येति विशेषणं तत्तस्य चूलिकासत्ताप्रतिपादनार्थ, न तु पदप्रमाणाभिधानार्थ, यतोऽवाचि नन्दीटीका कृता-'अट्ठारसपयसहस्साणि पुणपढमसुयखंधस्स नवबंभचेरमइयस्स पमाणं, विचित्तत्थाणि य सुत्ताणि गुरुवएसओ तेसिं अत्थो जाणियव्वोत्ति, पदसहस्राणीह यत्रार्थोपलब्धिस्तत्पदं, 'पदाणे'–ति पदपरिमाणेनेति । चूलिका सहित आचारांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कंध के पद के परिमाण अठारह हजार है। __चूलिका सहित आचारांग नामक प्रथम अंग अर्थात् आचारांग नामक श्रुतस्कंध है उसमें दूसरे श्रुतस्कंध में पिंडैषणा ( अध्ययन ) आदि पाँच चूला है और प्रथम श्रुतस्कंध में नव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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