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________________ टीका-'उदये पेढालपुत्ते' त्ति सूत्रकृतद्वितीयश्रुतस्कंधे नालन्दीयाध्ययनाभिहितः, तद्यथा-उदकनामाऽनगारः पेढालपुत्रः पार्श्वजिनशिष्यः योऽसौ राजगृहनगरबाहिरिकाया नालन्दाभिधानायाः उत्तरपूर्वस्यां दिशि हस्तिद्वीपवनखण्डे व्यवस्थितः तदेकदेशस्थं गौतम संशयविशेषमापृच्छय विच्छिन्नसंशयः सन् चतुर्यामधर्म विहाय पश्चयाम धर्म प्रतिपदे इति । -ठाण० स्था ६/६१ ___ आर्यो ! १ वासुदेव कृष्ण, २ बलदेव राम, ३ उदकपेढालपुत्र, ४ पोट्टिल, ५ गृहपति शतक, ६ निम्रन्थ दारुक, ७ निर्ग्रन्थीपुत्र सत्यकी, ८ श्राविका के द्वारा प्रतिबुद्ध अम्मड परिव्राजक ६ पार्श्वनाथ की परम्परा में दीक्षित आर्या सुपावा ये नौ आगामी उत्सर्पिणी में चतुर्याम धर्म की प्ररूपणा कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिवृत्त तथा समस्त दुःखों से रहित होंगे। ३-उदक पेदाल पुत्र-इनका मूल नाम उदक और पिता का नाम पेढाल था। ये उदक पेढाल पुत्त के नाम से प्रसिद्ध थे। ये वाणिज्य ग्राम के निवासी थे। ये भगवान पावं की परम्परा में दीक्षित हुए। एक बार ये नालन्दा के उत्तर-पूर्व दिशा में स्थिति हस्तिद्वीप वनखण्ड में ठहरे हुए थे। इन्हें श्रावक विषय पर विशेष संशय उत्पन्न हुआ। गणधर गौतम से संशय निवारण कर ये चतुर्याम धर्म को छोड़कर पंचयाम धर्म में दीक्षित हो गये। .१२ वित्त सारही-(चित्त सारथि ) -राय० सू १५०-१५१ पार्थापत्य केशीकुमार से चित्तसारथि ने बारह व्रत धारण किये । तएणं से चित्ते सारही केसीकुमारसमणल्स अंतिए पंचाणुव्वतियं जाव गिहिधम्म उवसंपजित्ताणं विहरति । तएणं से चित्ते सारही समणोवासए जाए अहिगयजीवाजीवे उवलद्धपुण्णपावे आसवसंवरनिजरकिरियाहिगरणबंधमोक्खकुसले असहिज्जे x x x | निग्गंथे पावयणे णिस्संकिए णिक्कंखिए । -राय० सू० १५०-१५१ केशीकुमाण श्रमण से चित्त सारथि ने पाँच अणुव्रत तथा सात शिक्षाव्रत-इस प्रकार बारह प्रकार गहिधर्म स्वीकृत किया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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