SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २६ ) .१.१२ शिक्षक साधु की संख्या (क) सहस्राणि नवैवाथ तथा नवशतान्यपि । इति संख्यान्विताः संति शिक्षकाश्चरणोद्यता। -वीरवर्धच अधि १६/श्लो २०८, ६ शिक्षक(ख) शून्यद्वितयरन्ध्रादिरन्ध्रोक्ताः सत्यसंयमाः ( शिक्षकाः परे) ॥ ३७५ ।। -उत्तपु० पर्व ७४/श्लो ३७५ नौ हजार नौ सौ यथार्थ संयम को धारण करने वाले शिक्षक थे । शासन संपदा .२ भगवान की शिष्यपरंपरा .१ तीन केषल मानी णिव्वुर पीरि गलिय-मय-रायउ। इंदभूइ गणि केवलि जायउ॥ सो विउलइरिहि गउ णिवाणहु । कम्म - विमुक्कउ सासय - ठाणहु॥ तहि वासरि उप्पण्णउ केवलु। मुणिहि सुधम्महु पक्खालिय-मलु ॥ तण्णिवाणइ जंबू-णामहु। पंचमु दिव्य - णाणु हय-कामहु ॥ .२ चतुर्दश पूर्वधारी :.३ ग्यारह अंग-दस पूर्वो के ज्ञाता : णं दि सु-णदिमित्तु अवरु वि मुणि । गोषद्धणु चउत्थु जलहर - झुणि ॥ ए पच्छइ समत्थ सुय - पारय । णिरसिय - मिच्छायम णिरु णीरय ॥ पुणु वि सह - जइ पोट्ठिलु खत्तिउ । जउ णाउ वि सिद्धत्थु हयत्तिउ ॥ दिहिसेणंकु विजउ बुद्धिल्लउ । गंगु धम्म सेणु वि णीसल्लउ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy