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________________ ( २४ ) - उस यान में ज्ञानरूप सफेद विमल वस्त्र ऊँचा किया हुआ पाल था। विशुद्ध सम्यक्त्व रूप निर्यामक प्राप्त हुआ था। (ड) संसार-सागर से तैरना जम्मणं-जर - मरण-करण - गंभीर - दुक्खपषखुभियपउर - सलिलं-संजोग विओग-वीचिचिता-पसंग-पसरिय-वह-बंध-महल-विउल-कलोलकलण-विसवियलोभ-कलकलेत-बोल-बहुलं अवमाणण-फेण-तिब्व-खिसण-पुलंपुलप्प-भूय-रोगवेयण-परिभव-विणिवाय-फरुसधरिसणा-समावडिय - कढिण-कम्म-पत्थर-तरंगरंगंत-निश्चमच्चुभय-तोयपट कसाय-पायाल-संकुलं भवसयसहस्स-कलुसजलसंचयं पइभयं-अपरिमियमहिच्छं-कलुसमइवाउवेग-उद्धम्म-माणदगरयरयंधकारवरफेण-पउर-आसापिवास-धवलं मोहमहावत्त-भोगभममाण-गुप्पमाणुच्छलंतपञ्चोणिवयंत-पाणिय - पमायचंडबहुदुद्दसावयसमाहयुद्धायमाण - पठभारघोरकंदियमहारव-रवं भेरवर अण्णाणभमंतमच्छ - परिहत्थ - अणिहुतिदियमहामगर-तुरिय - चरिय - खोखुब्भमाण-नच्यंत - चवल - चंचल-चलंत-घुम्मतजलसमूह अरइ-भय - विसायसोग - मिच्छत्त सेलसंकडं आणइसंताणकम्मबंधणकिलेसचिखल्ल सुदुत्तारं अमर णर-तिरय णिरय गइ गमण - कुडिल परियत्त-विउल-वेलं । ओव० सू० ४६ संसार-सागर जन्म, जरा और मरण के द्वारा उत्पन्न हुए गंभीर दुःख रूप क्षुभित अपार जल से भरा हुआ है। उस दुःख रूप जल में संयोग-वियोग रूप लहरें पैदा होती हैं । वे तरंगे चिन्ता-प्रसंगों से फैलती हैं। वध और बंधन रूप बड़ी मोटी कल्लोलें हैं, जो कि करुण विलाप और लोभ रूप कलकलायमान ध्वनि की अधिकता से युक्त है। भवसागर में भरे हुए दुःखरूप जल का ऊपरी भाग नित्य मृत्युभय है । वह तिरस्कार रूप फेन से फेनित रहता है। क्योंकि तीव्र निन्दा, निरन्तर होनेवाली रोग वेदना, पराभिभावके संपर्क, कठोर वचन और भर्त्सना से बद्ध मजबूत बने हुए कर्मोदय रूप कठिन पत्थरों पर (संयोग-वियोग आदि रूप ) तरंगे टकराती रहती हैं । भवसागर चार कषाय रूप पाताल कलशों से ( अथवा तले की भूमि से ) व्याप्त है । संसार सागर में सैंकड़ों-हजारों लाखों भवों के कलुष (=पाप ) जलसंचय (= जलराशि की वृद्धि के कारणों से युक्त ) है । वह प्रत्यक्ष भयंकर है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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