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________________ वर्धमान जीवन-कोश संपूर्य कोटिवर्षायुरनालोच्य च तन्मृतः । विश्वभ, तिर्महाशुक्र प्रकृष्टायुः सुरोऽभवत् ॥ १०७ ।। -त्रिशलाका पर्व १०।सर्ग १ xxx भमिऊण य अणंतरभवे तहाविहं कि पि कम्मं काऊण रायगिहेणगरे विस्सणंदी राया। तस्स भाया विसाहभ, ई जुवराओ ति। तस्स य जुवरायस्स धारिणीए महादेवीए पुत्तो विस्सभूतो णामेणजाओ। xxx + + + इओ य राइणो पुत्तो विसाहणंदी उज्जाणबाहिरगओ तप्पवेससमूसुओ चिट्ठइ +++ विस्सभ तीवि अणगारो तम्मि घेव णगरे विहरतो समागओ । पविट्ठो मासस्स पारणए क्खाणिमित्तं णगरं। दिट्ठो य विइरमाणो विस्सणंदिपुरिसेहिं, पच्चभिण्णाओ। दट्टण य तेसि मुप्पण्णो मच्छरो। वियम्भियमण्णाणतिमिरं । अण्णाणंधयारमोहियमईए मुक्का अहिणवपसूया गावी। ए समुहागओ णोल्लिओ, पडिओ य। कओ हलबोलो विस्सणंदिपुरिसेहिं । भणियं च णेहि-कहिं गयं तुझ कविठ्ठपाडणबलं ? ति । पच्चभिण्णाया य जहा एए विस्सणं दिसंतिया पुरिसा। तयणन्तरमेव हुणो पणट्ठो विवेओ परिगलिओ उवसमो, पज्जलिंओ कोहग्गी। धाविऊणय गहिया गावी गहेहि, भमाडिया सोसोवरिं, तणपूलिय व्व पक्खित्ता धरणीए। भणियंच ण-"रे रे का रसाहमा ! कोल्हुयसमसीसिया होऊण मं उवहसइ ? कि छहापरिगयदुब्बलसरीरस्सवि वगाहिवइणो मुहकुहरे अंगुलिं पक्खिविउ कोइ समत्थो ? ति । किंच कि कीरइ मय तुम्हारिसेहि गोमाउ-साणसरिसेहिं । गइकल्लोलसमेहि पयडियमुहमेत्तसारेहिं ॥२६।। । एवं च सुइरं चिंति (? भणि) ऊण गरुयाहिमाणवसगेण कोणपच्छाइयविवेगेण कओ णियाणाणुबंधो, वहा-जइ इमस्स दुक्करस्स तव-चरणस्स अणुचिण्णस्स होज्ज फलंतओ अहं अतुलबल-परक्कमो एसकालं जत्ति। एवं बंधिऊण णियाणं, इमस्स ठाणस्स अपडिक्कतो विहरिउकिं पि कालं कालमासे कालं अण महासुक्के देवलोए उक्कोसहिईओ देवो समुप्पण्णो। -चउप्पन्न० पृ०६८/६९ राजगृह नगरी में विश्वनंदी नामक राजा था। उसकी प्रियंगु नामकी पत्नी से विशाखनंदी नामक एक पुत्र ।। उस राजा के विशाखभूति नामक एक छोटा भाई था-जो युधराज था । उस युवराज के धारिणी नामक मरीचिका जीध पूर्वोपार्जित शुभकम से विशाखभूति युवराज की धारिणी नामकी स्त्री से विश्वभूति नामक से जन्म लिया। विश्वभूति अनुक्रम से यौवन-वय को प्राप्त हुआ। । एक समय नंदनवन में देवकुमार की तरह वह विश्वभूति अंत:पुर सहित पुष्पकरंडक नामक उद्यान में क्रीड़ा करने गया । वह कोड़ा कर गहा था-इतने में राजा का पुत्र विशाखनन्दी क्रीड़ा करने की इच्छा से वहां पाया। विश्वभूति अन्दय होने के कारण वह बाहर रहा । उस समय पुष्प लेने के लिये उसकी माता की दासियां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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