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________________ वधमान जोवन-कोश ववगयमोहा समणा मोहच्छन्नस्स छत्तयं होउ । अणुवाणहा य समणा मज्भंतु उवाणहे हुन्तु ।। ३५६ ।। मलय टीका-गाथागमनिका -व्यपगतो मोहो येषां ते व्यपगतमोहाः श्रमणाः, अहं तु नेत्थं यतः अतो मोहाच्छादितस्य छत्रकं भवतु, अनुपानकांश्च श्रमणाः मम चोपानहौ भवत इति गाथार्थः ।। सुक्क बरा य समणा निरंबरा मझ धाउरत्ताई। हुंतु इमे वत्थाई अरिहो मि कसायकलुसमई ।। ३५७ ।। मलय टीका-गाथागमनिका-शुक्लांत्यम्बराणि येषां ते शुद्धाम्बराः, श्रमणाः तथा निर्गतमम्बरं येषां ते निरम्बराः-जिनकल्पिकादयः, 'मझ' ति मम च, एते श्रमणा इत्यनेन तत्कालोत्पन्नतापसश्रमणव्युदासः, धातुरक्तानि भवन्तु मम वस्त्राणि किमिति ?, अस्मि योग्योऽस्मि तेषामेव, कषायः, कलुषा मतिर्यस्य सोऽहं कषायकलुषमतिरिति गाथार्थः ॥ वजंतऽवज्जभीरू बहुजीवसमाउलं जलारंभं । होउ मम परिमिएणं जलेण हाणं च पिअणं च ।। ३५८ ।। मलय टीका-गाथागमनिका-वर्ज यन्त्यवद्यभोरवो बहु नीवसमाकुलंजलारम्भ, तत्र व वनस्पतेरवस्थानात् , अवद्य--पापं, अहं तु नेत्थं-पतः अतो भवतु मे परिमितेन जलेन स्नानं च पानं चेति गाथार्थः। एवं सो रूइयमई निअगमइविगप्पि इमं लिंग। तद्विअहेउसुजुत्तं पोरिव्वजं तओ कासो । ३५६ ।। मलय टीका-स्थूलमृषावादादिनिवृत्तः, एवमसौ रुचिता मतिर्यस्य असौ रुचितमतिः, अतो निजमत्या विकल्पितं निजमतिविकल्पितम् , इदं लिङ्ग विशिष्ट, तस्य हितास्तध्दिताः तद्धिताश्च हेतवश्चेति समासः तैः सुष्ठु युक्त श्लिष्टमित्यर्थः परित्राजानामिदं पारिवाजं प्रवर्त्तयति, शास्त्रकारवचनात् वर्तमान निर्देशोऽप्यविरुद्ध एव, पाठान्तरं वा 'पारिव्वजं ततो कासित्ति' पारिवाजं ततः कृतपानिति गाथार्थः। -आव० निगा ३५० से ३५६ इस प्रकार बहुत काल पर्यन्त विहार करते हुए अन्यदा ग्रीष्मऋतु का आगमन हुआ। उस समय अति दारुण सूर्य की किरणें पड़ने से तप्त पृथ्वी की रज प्रतिमार्ग में चरण के नखों को रांधने लगा। उस समय जिनके सर्व अग स्वेद से आद्रित हो गये। और पहने हुए दो वस्त्र मल से लित हो गये। तथा वे मरोचि मुनि तृषा से पीड़ित हो गये । फलस्वरूप चारित्रावरणीय कर्मोदय से इस प्रकार चिंतन करने लगे। मेरु पर्वत को तरह जिसका वहन नहीं हो सकता-उस साधुपन का वहन करने में मैं समर्थ नहीं हूँ। क्योंकि मैं गुण-विहीन हूँ और. भवकी आकांक्षा वाला हूं। पंगु होने से व्रत का त्याग भी कैसे हो सकता है। उस साधुपन का त्याग करने से लोक में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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