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________________ १२ वर्धमान जीवन-कोश महापूजा को । पुन: चैत्यद्रुमों में स्थित तीर्थ करों की मूर्तियोंका पूजन करके वह अपने वाहनपर आरुढ होकर मेरूपर्वत और नन्दीश्वर आदि में गया और वहाँ की प्रतिमाओं कापूजन करके तथा विदेह आदि क्षेत्रों में, स्थित जिनेन्द्र देव केवल ज्ञानी और गणधरादि महात्माओं का उच्च भक्ति के साथ महापूजन करके उसने उन सबको नमस्कार किया। तथा उनसे समस्त तत्त्व आदि में गभित मुनि और धावकों के धर्म को सून कर और बहुत-सा पुण्य उपाजन करके वह अपने देवालय को चला गया । ___ इस प्रकार वह अनेक प्रकार से पुण्य को उपार्जन करता हुआ और अपनी शुभ चेष्टा से अपनी देवियों के साथ देव भवनों में तथा मेरुगिरि के वनों आदि में क्रोड़ा करता हुआ, उनके मनोहर गीत सुनता हुआ और दिव्य नारियों के नृत्य-शृगार, रूप-सोन्दर्य और विलास को देखता हुआ तथा पुण्योपार्जित नाना प्रकार के परम भोगों को भोगता हुआ वह स्वर्गीय सुख भोगने लगा। उसका शरीर सात हाथ उन्नत था, सप्त धातुओं से रहित और नेत्रा-स्पदन आदि से रहित था। वह तीन ज्ञान का धारक और अणिाभादि आठ ऋद्धियों से विभूषित था । दिव्य-देह का धारक था । इस प्रकार वह सुखसागर में निमग्न रहता हआ अपना काल बिताने लगा। (छ) सावय-वयई विहाणे पालिवि जीवई अप-समाणइ लालिवि । बहुकाले सो मरेवि पुरुरउ पढम-सग्गे सुरु जाउ सुरूरउ वे-रयणायराउ सोहंतउ अणिमाइय-गुण-गणहिं महंतउ । -बड्ढमाणच० संधि २/कड ११ विधि--विधान पूर्वक श्रावक ब्रतों का दीर्घकाल तक पालन कर तथा जीवों का अपने समान ही लालन करता हुआ वह पुरूरवा नामक शबर मरा और प्रथम स्वर्ग में दो सागरोपम की आयु से सुशोभित था ! अणिमादिक ऋद्धि-समूह से महान् सुरोरव नामक देव हुआ। (ज) जीवितावसितौ सम्यक्पालयित्वादराट् व्रतम्। सागरोपमदिव्यायुः सौधर्मेऽनिमेषोऽभवत् । -उत्तपु० पर्व ७४ श्लो २२ जोधन-पर्यन्त मधु आदि तीन प्रकार के त्याग के व्रतों का सम्यग पालन किया। आयु समाप्त होने पर वह सौधर्म स्वर्ग में एक सागरोपम की उत्तम आयु को धारण करने वाला देव हुआ । .०३ भगवान महावीर का जोव-मरीचिकुमार भव में (क चइऊण देवलोगा इह चेव य भारहमि वासंमि । इक्खागकुले जातो उसभसुयसुतो मरीइत्ति ।।१४५।। मलयटीका-ततो देवलोकात स्वायुः क्षये च्युत्वा भारतवर्ष । इक्ष्वाकुकुले जातः-उत्पन्नऋषभसुतसुतो ।। मरीचिः ऋषभपौत्र इत्यर्थः कुलगरवंसे तीए भरहस्स सुओ मरीइत्ति ।। १४६ ।। - आव० निगा १४५/१४६ का उत्तराध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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