SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्धमान जीवन-कोश ___ उस सार्थवाह के साथ मदगामी तपोलक्ष्मी से युक्त तथा हृदय कमल में जिनेश्वर को धारण किये हुए सागरसेन नामक मुनिश्वर चले । एक दिन वह सार्थवाह चोरों के द्वारा लुट लिया गया तथा उसके साथी लकड़ी पत्थरो से कूटे गए । जो शुरव र थे, उन्होने तो जुभते हुये प्राण छोड़ दिये और जो कायर व्यक्ति थे, वे भाग खड़े हुये । इसी बीच में वन के मध्य में नीन्द्र (सागरसेन ) के तप के प्रभाव से एक प.णीन्द्र ने स्थिति को शात किया। दिशा के विघात से विमूढ़ ( दिग्भ्रम हो जाने के कारण ) सुन्दर भुजावाले उन मुनीन्द्र ने एक शबर को काली नामक अपनी शबरी के साथ देखा । शुकर और हिरणों के विदारण में शुर तथा अत्यन्त कुरूप उस शबर का नाम पुरूरवा था । पूर्वोपार्जित पापों के कारण कलुषित मन वाला वह क र पुरूरवा भो मुनि वचनों से प्रबुद्ध हो गया । उस शबर ने मुनीन्द्र की भक्ति करके उनके पास प्रमाद रहित एवं सम्यक्त्व सहित होकर श्रावकवतों को ले लिया तथा क्रोध को उपशम कर, परिग्रह छोड़कर दुनिवार काम-वासना को नष्ट कर दिया । घत्ता-मुनि के साथ जाकर, कर ऊंचाकर, उस शबर ने उन्हें मार्ग में लगा दिया ( पथ-निर्देश कर दिया )। इस प्रकार जिन गुणों का चिन्तन करता हुआ वह पुरूरवा अपनी मति को निर्धी त कर उपशमश्री से सुशोभित हुआ। विधि-विधान पूर्वक श्रावक व्रतों का दीर्घकाल तक पालन कर तथा जीवों का अपने समान ही लालन करता हुप्रा वह पुरूरवा नामक शबर मरा और प्रथम स्वर्ग में दो सागर की आयु से सुशोभित तथा अणिमादिक ऋद्धिसमूह से महान् सुरौरव नामक देष हुआ। कर दिया। .०२ भगवान महावीर का जीव-सौधर्मकल्प देव में (क) अपरविदेहे ग्रामस्य चिन्तको XXX राजदारुनिमित्तं तस्य वनगमनं सुसाधून भिक्षानिमित्तं सार्थाद्मष्टान् तत्र दृष्टवान, ततोऽअनुकम्पया-परमभक्त्या दानं अन्नपानस्य,+ +-+, प्रापणं पथि, तदनन्तरं गुरोः कथनं, ततः सम्यक्त्वप्राप्तिः, तत्प्रभावान्मृत्वाऽसौ सौधर्मदेवलोके उत्पन्नः पल्योपमायुः सुरो महर्द्धिक इति। - आव० मूलभाष्य । गा १.२।टीका (ख) अस्यैव जंबूद्वीपस्य प्रत्यग्विदेहभूषणे । विजयेऽस्ति महावप्रे जयन्ती नामतःपुरी ॥३।। + स्वामीभक्तो नयसाराभिधानो ग्रामचिन्तकः ।।५।। उत्तरार्ध + ग्रामायुक्तोऽपि हि भुक्त्वा गत्वा नत्वाऽवदन्मुनीन् ।।२०।। पूर्वार्ध अथाभ्यस्यन् सदा धर्म सप्ततत्त्वानि चिन्तयन् । सम्यक्त्वं पालयन् कालमनैषीत् स महामनाः ।।२३ विहिताराधनः सोऽन्ते स्मृतपञ्चनमस्कृतिः । मृत्वा बभूव सौधर्म सूरः पल्योपमस्थितिः ॥२४॥ त्रिशलाका पर्व १०।सर्ग १ अपर विदेह क्षेत्र में भगवान महावीर का ग्रामचिन्तक जीव सुसाधुओं को परम भक्ति से अन्नपान देने से तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy