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________________ ह वर्धमान जीवन-कोश भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्ठियस्स पडिविरयस्स जंणं तुम्भे वा अण्णो वा एव वयह-णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगम्स एगपाणाए वि दंडे णिकि वत्ते अयं पि भे उवएसे णो णेयाउए भवइ। __ -सूय० श्रु २/अ ७/सू २५ कई मनुष्य आरण्यक, पण कुटीवासी, ग्रामान्तिक, (= ग्राम के समीप के वासी या भूमणशील) या रहस्य माधक होते हैं - जिनसे श्रमणोपासक को हिंसा-प्रवृत्ति हट जाती है। जो बहुसंयत नहीं होते हैं, बहुत प्रतिविरत नहीं होते हैं । जो मनगढन्त झूठ सच बातें इस प्रकार कहते हैं हम नहीं-दूसरे हनने योग्य हैं। वे यथा समय मरकर अन्यतर असूर या कल्विषी आदि में उत्पन्न होते हैं और वहां से निकलकर पुनः बकरे की तरह गूक और अन्धे होते हैं ! तब भी वे त्रस कहे जाते हैं। अतः श्रावकों के व्रत को निविषय बताना न्यायसंगत नहीं है। (ज) भगवं च उदाहु-संतेगइया पाणा दीहाउया, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरताए दंड णिक्खित्ते भवइ। ते पुत्वामेव कालं करेंति, करेत्ता पारलोइयत्ताए पञ्चायति । ते पाणा वि वुच्चंति, ते तसा वि बुच्चंति. ते महाकाया, ते चिरिट्टिइया, ते दीहाउया। ते बहुयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्ख यं भवइ। ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक वायं भवई। से महया तसकायाओ उव संतस्स उवट्ठियस्स पडिविरयस्स ज णं तुम्भे वा अण्णोवा एवं वयह-णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगम्स एगपाणए वि दंडे णि विखत्ते। अयं पि भे उवएसे णो णयाउए भवइ । -सूय० श्रु /अ ७ सू २६ कई प्राणो [श्रमणोपासक से ] दीर्घायुष्य होते हैं-जिनसे उसने अपने हिंसात्मक आदान-प्रवृत्ति को हटाली है। और जिनसे पहले ही वह [श्रमणोपासक ] कालकर जाते हैं। कालकरके पारलौकिकता के लिए चले जाते हैं। ( इसके बाद भी) वे ( दीर्घायुषी प्राणी) त्रस ही कहे जाते हैं।। वे महान् शरीर वाले हैं और चिरकाल की स्थिति वाले और दीर्घ आयु वाले एवं बहुत संख्या वाले हैं। इसलिए श्रमणोपासक का व्रत उनकी अपेक्षा से सुप्रत्याख्यान होता है अतः श्रावक के प्रत्याख्यान को निर्विष बनाना उचित नहीं है। (झ) भगवं च उदाहु-संतेगइया पाणा समाउया, जेहिं समणोवासगम्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिकि वत्ते भवइ । ते सममेव कालं करेंति, करेत्ता पारलोइयत्ताए पच्चायति । ते पाणा वि वुच्चंति, ते तसा वि वुन्चंति, ते महाकाया, ते समाउया, पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपचक वायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्टियस्स पडिविर यस्स ज णं तुभे वा अण्णो वा एवं वयह-णस्थि णं से केड परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंड णिविदत्ते । अयंपि भे उवएसे णो णेया'गए भवड। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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