SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 331
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८४ वर्धमान जीवन-कोश -ओव० सू८२ अन्त में केवलिलब्धि भी प्राप्त की थी। .८ गौतम के प्रश्नोत्तर की जिज्ञासा तएणं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोऊडल्ले उप्पण्णसड्ढे उप्पण्णसंसए उप्पण्णकोऊहल्ले समुप्पण्णसड्ढे समुप्पण्णसंसए समुप्पण्णकोऊहल्ले उठाए. उट्टेइ, २ त्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, २त्ता समणं भगवं महावीर तिक्खुत्तो आयाहिण पयाहिणं करेइ, २ त्ता वंदइणंमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता नच्चासण्णे नाइदूरे सुम्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासमाणे एवं वयासी। जब भगवान् गौतम भगवान महावीर के पास संयम और तप से आत्मा को भावित कर विचर रहे थे। तब भगवान् गौतम में श्रद्धा (= इच्छा). संशय ( = अनिर्धारित) अर्थ = शंका कुतूहल की प्रवृत्ति हुई-उत्पत्ति हुई, प्राप्ति हुई, मूत्तिमान हुए। अतः उठकर खड़े हुए। जहां श्रमण भगवान् महावीर थे-वहां आए . तीन बार आदक्षिणा प्रदक्षिणा की । वंदना की नमस्कार किया । न अधिक सटकर न अधिक दूर रहकर सुश्रूषा और नमस्कार करते हुए, अभिमुख होकर, करबद्ध होकर पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले.ह गणधर के उपदेशकासमय उवरिं पोरुसीए उद्विते तित्थकरे गोयमसामी अन्नो वा गणहरो बितियपोरुसीए धम्म कहेति, स्यान्मतिः किं कारणं तित्थकर एवं द्वितीयायां पोरुष्यां धर्म न कप्ययति ? उच्यते -खेदविणोदो ५-६१ ५८ तित्थगरस्स खेदविणोदो भवति, परिश्रमविश्राम इत्यर्थः, शिष्यगुणाश्च दीपिताः प्रभाविता भविष्यति । -आव० निगा ५८८ -पृ चूर्णी० ३३३ तीर्थकर प्रथम पौरुषी में तथा गौतम स्वामो गणधर आदि द्वितीय पौरुषी में धर्म का कथन करते हैं। क्योंकि तीर्थंकर खेद विणोद होते हैं तथा शिष्यों में दिप्तवान्-प्रभावान् गुण होते हैं। .५० भगवान पार्श्वनाथ के संतानीय शिष्य.१ उदयपेढालपुत्र और गौतम गणधर के प्रश्नोत्तर तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहेणामं णयरे होत्था। रिद्धस्थिमियसमिद्धे जाव पडिरूवे ॥१॥ तस्सणं रायगिहस्स णयरस्स बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए, प्रत्थ णं णालंदाणामं बाहिरिया होत्था । x x x॥ ॥ तत्थणं णालंदाए बाहिरियाए लेवेणामं गाहावई होत्था x x x ॥३॥ तस्सणं लेवस्स गाहावइस्स णालंदाए बाहिरियाए उत्तरपुरथिमे दिसिभाए, एत्थणं सेसदवियाणाम उदगसाला होत्था x x x ॥५।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy