SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 327
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्धमान जीवन - कोश मलय टीका - परिवार x x x । तथा द्वयोर्गणरयुगलकयोः प्रत्येकं त्रिशतस्त्रिशतो गच्छ:, किमुक्तं भवति ? उपरिस्थितानां चतुर्णा गणभृतां प्रत्येकं प्रत्येकं त्रिशतमानः परिवारः । दो युगल का अर्थात् ऊपर के चार गणधर अकम्पित, अचलभ्राता, मेतार्य और प्रभास इन चारों का प्रत्येक प्रत्येक का ३००-३०० शिष्य-परिवार था । अतः प्रभास गणधर भगवान् के पास ३०० शिष्यों के साथ दीक्षित हुए। .४ प्रभास गणधर के संशय एकादशस्य निर्वाण संशयः निर्वाणं किमस्ति किंवा नेति -आह-बंधमोक्ष संशयादस्य कोविशेषः १, उच्च्चते स ह्य ुभयगोचराः, अयं तु केवलविभागविषय एव तथा किं संसागभावमात्र एव, मोक्षः किं वाऽन्यः इत्यादि । - आव० निगा ५६६ / टीका २८. एकादशवें गणधर प्रभास के निर्वाण है या नहीं - यह संशय था । संसार का अभाव ही मोक्ष है या अन्य । यह केवल विभाग विषय ही है । .५ प्रभास गणधर का श्रुत-अध्ययन सव्वजिणाण गणहरा चोहसपुव्वी उ ते तस्स । - आव० निगा २६२ - आव निगा ६५७ सव्वे दुवाल संगीआ सव्वे चउदस पुत्रो सर्व जिनों तीर्थंकरों के गणधर सर्वज्ञ होने के पूर्व- चतुर्दश पूर्वधारी होते हैं । अतः प्रभास गणधर सर्वज होने के पूर्व चतुर्दश पूर्वधारी थे । .६ प्रभास गणधर का जन्म-नक्षत्र (जन्म - नक्षत्रं ) प्रभासस्य पुष्यः । .७ प्रभास गणधर का जन्म नक्षत्र पुष्य था । प्रभास गणधर की अगार पर्याय-गृहस्थ पर्याय ( अगार पर्याया) प्रभासस्य षोडश (वर्षाणि ) प्रभास गणधर सोलह वर्षं गृहस्थ- पर्याय में रहे । .८ प्रभास का गोत्र और जाति (क) (गोत्र) कौडिन्यौ मेतार्य प्रभासश्च (ख) सव्त्रेय माहणा जच्चा टीका - सर्वे ब्राह्मणा जात्या:- प्रशस्तजातिकुलोत्पन्नाः । प्रभास गणधर की छमस्थ दीक्षा-पर्याय Xx x अंगं च छउमत्थपरिआओ टीका - x x x प्रभासस्य वर्षाष्टकमेषामेव यथाक्रमं छद्मस्थपर्यायः । प्रभास गुणधर ८ वर्ष छद्मस्थ पर्याय में रहे । Jain Education International - आव० निगा ६४६ /टोका इन्द्रभूति आदि सब गणधर प्रशस्त जाति कुल में उत्पन्न हुए थे । जाति की अपेक्षा सभी ब्राह्मण थे । अतः प्रभास गणधर जाति से ब्राह्मण थे । कौडिन्य गोत्र था । .ε For Private & Personal Use Only -- आव० निगा ६५० /टीका आव० निगा ६४६ / टोका - आव० निगा ६५७ - आव० निगा ६५२ www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy