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________________ वर्धमान जीवन-कोश कारणं--नागच्छन्तीह सदैव सुरगणाः, संक्रान्तदिव्यप्रेमतया विषयप्रसक्तत्वात् , प्रकृष्टरूपगुणस्त्रीप्रसता विच्छिन्नरम्यदेशान्तरगतमनुष्यवत् , तथा असमाप्तकर्त्तव्यत्वात्, बहुकर्त्तव्यताप्रसाधनप्रयुक्तविनीतपुरुषका तथा अनधीनमनुजकार्यत्वात् नारकवत् अनभिमतगेहादौ निःसङ्गयतिवद्वति, अशुभत्वान् नरभवस्य तदा गन्धासहिष्णुतया नागच्छन्ति, कडेवरमिव हंसा इति, जिनजन्ममहिमादिषु पुनर्भक्तिविशेषात् भावान्तररागतश्च क्वचिदागच्छन्त्येव, तथा चैते साम्या भवतोऽपि प्रत्यक्षा एव, शेषकालमपि सामान्यतश्चन्द्रसूर्यादिविमानप्रत्यक्ष वात् तद्वासिसिद्धिति कृतंप्रसङ्गन, छिन्नंमि संसयंमी जाइजरामरणविप्पमुक्केण । सो समणो पव्वइओ अद्भुट्टहिं खंडियसएहिं ।।६२५॥ टीका-व्याख्या पूर्ववत् -आव निगा ६२२ से ६२॥ (ख) मौर्यपुत्रोऽपि संदेहच्छिदे स्वामिनमाययौ। स्वाम्युप्यूचे मौर्यपुत्र ! तव देवेषुसंशयः ॥१३७॥ स मिथ्या पश्य नन्वेतान् प्रत्यक्षमपि ना किनः । अस्मि । समवसरणे शक्रादीन स्वयमागतान ।।१३८॥ संगीतकादिवेयग्रयान्मर्त्यगंधाच्च दुःसहात्। नायान्ति शेषकालेऽमो तदभावो न तावता ।।१३६॥ अर्हज्जन्माभिषेकादावायान्ति यदमी भुवि। प्रभावः कारणं तत्र गरीयान श्रीमदह ताम ॥१४॥ इति स्वामिगिरा बुद्धौ मौर्यपुत्रोऽपि तत्क्षणम । परिवत्राज शिष्याणां साधं साधैः शतै स्त्रिभिः ॥१४१५ -त्रिशलाकां० पर्व १०/सर्ग ५ तत्पश्चात् स्वयं के संशय को दूर करने के लिए मौर्य पुत्र भगवान् के पास आया। भगवान् ने कहा-हैं मौर्यपुत्र ! तुमको देवों के विषय में सन्देह है। परन्तु यह मिथ्या है। इस समवशरण में स्वयं की इच्छा से आये हुए इन्द्रादिक देव प्रत्यक्ष है। शेष काल में संगोत कार्यादि की व्यग्रता से और मनुष्यलोक के दुःसह गन्ध के कारण वे देव यहाँ नहीं आते हैं-इस कारण उनका अभाव नहीं हो जाता। वे अरिहंत के जन्माभिषेक आदि अनेक प्रसंगों पर इस पृथ्वी पर आते हैं। इसका कारण श्रीमत् अरिहंत का अतिश्रेष्ठ प्रभाव है। इस प्रकार भगवान् की वाणो से मौर्य पुत्र भी तत्काल प्रतिबोध को प्राप्त हुभा और स्वयं के ३५० शिष्यों के साथ दीक्षा ग्रहण की। .२ मौर्यपुत्र के माता-पिता के नाम (क) मोरीए विजयदेवाए नंदणो घंचनऊय-वरिसाऊ। मोरियनिवेस-जाओ मोरियपुत्तो त्ति सत्तमओ॥ -धर्मोप० पृ० २२७ मौर्य पुत्र गणधर की माता का नाम विजयादेवी और पिता का नाम मौर्य था। जन्मस्थान-मौर्य सन्निवेश था। ६५ वर्ष की आयु थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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