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________________ २६० वर्धमान जीवन-कोश धारण करने वाले हैं । जो घोर-विशिष्ट तपस्वो है, जो दारुण भीषण ब्रह्मचर्य-व्रत के पालक हैं, जो शरीर पर ममत्व नहीं रख रहे हैं, जो तेजो लेश्या विशिष्ट तपोजन्य लब्धिविशेष, को संक्षिप्त किये हुए है। जो १४ पूर्वो के ज्ञाता है, जो मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनः पर्यवज्ञान-इनचारों ज्ञानों के धारक हैं, जिनको समस्त अक्षर संयोग का ज्ञान है । जिन्हों ने उत्कुष्टुक नामक आसन लगा रखा है, जो अधोमुख है। जो धर्म तथा शुक्ल ध्यान रूप कोष्ठक में प्रवेश किये हुए हैं अर्थात् जिस प्रकार कोष्ठक में धान्य सुरक्षित रहता है उसी प्रकार ध्यान रूपी कोष्ठक में प्रविष्ट हुए आत्मवृत्तियों को सुरक्षित रख रहे हैं। ४. सुधर्मा के पट्टधर जंबू स्वामी थे : सुहम्मं अग्गिवेसाणं, जम्बू नामे च कासवं । -नंदी० स्थविरावली, गा२५ सुधर्मा के पट्टधर आर्य जंबू स्वामी थे। .५ तम्मि कदकम्मणासे जंबू सामि त्ति केवली जादो । तत्थ वि सिद्धि पवण्णे केवलिणो णत्थि अणुबद्धा ।। -तिलोप० १४७७ जंबू स्वामी अन्तिम केवली थे। उनके निर्वाण के बाद अनुबद्ध केवली का विच्छेद हो गया। .१७ सुधर्म गणधर के पट्टधर जंबू के अनन्तर कतिपय विच्छेद : मण - परमोहि - पुलाए आहारग - खवग - उवसमे कप्पे। संजमतिय - केवलि - सिज्झणा य जंबूम्मि वोच्छिणा ।। -विशेभा० गा २५६३ जंबू अन्तिम केवली थे। प्रायः सभी जैन परम्पराए इस सम्बन्ध में एकमत हैं। जैन मान्यता के अनुसार जंबू के पश्चात् १-मनःपर्यव ज्ञान, २- परम अवधि ज्ञान, ३ –पुलाकलब्धि, ४-हारक शरीर, ५-उपसम श्रेणी, ६-क्षपक श्रेणी, ७-जिनकल्प साधना. ८-परिहार-विशुद्धि चारित्र, 8-सूक्ष्म-संपराय चारित्र, १० यथाख्यात चारित्र, ११-केवल-ज्ञान १२-मक्ष गमन का विच्छेद हो गया। नोट-तिलोयपण्णत्ती में गौतम, सुधर्मा और जंबू का केवलि-काल ६२ वर्ष का बताया गया है। प्रायः दिगम्बर परम्परा के सभी विद्वानों ने व श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार गौतम, सुधर्मा और जंबू के कैवल्य-काल को कुल संख्या ६४ वर्ष होती है। हियवत् थैरावली में वोर निर्वाणाब्द ७० में जंबू का निर्वाण सूचित किया है। उसके अनुसार गौतम, सुधर्मा और जंबू का सर्वज्ञावस्था का समय ७० वर्ष का होता है । .१८ सुधर्मा गणधर के बाद जंबू स्वामी आदि: सुहम्मं अग्गिवेसाणं, जम्बू नामं च कासवं । पभवं कच्चायणं वन्दे, वच्छ सिजंभवं तहा ।। -नंदी० स्थविरावली गा २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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