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________________ वर्धमान जीवन-कोश २५७ ५-मनक के पिता और वात्स्य गोत्री स्थविर आर्य सिज्जंभव (शय्यम्भव) के तुंगियायन गोत्रो स्थविर जसभद्र (यशोभद्र) नामक अंतेवासी थे। मोट-[ तिलोयपण्णत्तिकार ने गौतम, सुधर्मा और जंबू के केवल्यावस्था के समय को धर्म-प्रवर्तन काल शब्द से संज्ञित किया है। इसके अनुसार गौतम के बारह वर्ष, सुधर्मा के बारह वर्ष तथा जंबू के अड़तीस वर्ष कुल बामठ वर्ष होते हैं । ] (छ) सिरिजिणनिव्वाणगमणरयणीए उज्जोणीए चंडपज्जोअमरणे पालओ रायाअहिसित्तो। तेणं य अपुत्त उदाइमरणे कोणिअरज्जं पाडलिपुरं पिअट्ठिअं। तस्स य वरिसं ६० रज्जे-गोयम १२, सुहम्म ८, जम्बू ४४ जुगप्पहाणा । –सिरिदुसमाकाल समण संघथयं-अवचूरिः८०॥ श्रीजिन भगवान महावीर के निर्वाज-गमनकी रात्रि में उज्जयिनी में चंडप्रद्योतका मरण होने पर पालक राजा के रूप में अभिसिक्त हुआ। पाटलिपुत्र के राजा उदायी के निष्पुत्र रूप में मरणगत हो जाने पर उसने कोणिक (अजातशत्र ) का पाटलिपुत्र का राज्य भी अधिकृत कर लिया। उसके साठ वर्ष के राज्यकाल में गौतम १२ वर्ष, सुधर्मा ८ वर्ष तथा जंबू ४४ वर्ष तक युगप्रधान रहे। . नोट-आर्य सुधर्मा का जन्म ई० पू० ६०७ में हुआ था। जबकि भगवान महावीर का जन्म ई० पू० ५९६ में हुआ था। अतः भगवान महावीर से सुधर्मा आर्य आठ वर्ष बड़े थे। इन्द्रभूति गौतम का भी जन्म ई० पू० ६०७ में हुआ था। सुधर्मा ५० वर्ष को आयु तक गृहस्थ-पर्याय में रहे। ३० वर्ष साधु-पर्याय में रहे। भगवान् महावीर के निर्वाण और गौतम के केवली होने पर गौतम के जीवनकाल में वे १२ वर्ष असर्वज्ञ रूप में संघ के अधिनायक रहे। जिस दिन गौतम का निर्वाण हुआ सुधर्मा को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ। उनका आठ वर्ष का केवलिकाल है। अतः इस अवधि में केवली के रूप में संघनायक रहे। तत्त्वतः केवलो पट्टासीन नहीं होते। केवली के पट्टधर केवली आसीन हों, तो द्वादशांग रूप ज्ञान का परम्परा प्राप्त शृखलागत स्रोत यथावत् नहीं रह पाता। अतः भगवान् महावीर के पट्टधर गौतम नहीं थे परन्तु सुधर्मा गणधर थे। क्लिोयपण्णत्तो में गौतम, सुधर्मा और जंबू का केवलिकाल ६२ वर्ष बताया गया है। अपभूश जंबूसामि चरिउ के लेखक और कवि ने जंबूस्वामी के दीक्षित होने के अठारह वर्ष पश्चात् माघ शुक्ला सप्तमी को प्रातः आर्य सुधर्मा मोक्षगामी हुए। सुधर्मा के निर्वाण के अठारह वर्ष बाद जंबू का मोक्ष हुआ। .१२ सुधर्म गणधर का मासिक अनशन में परिनिर्वाण(क) इंदभूई सुहम्मो अ रायगिहे निव्वुए वीरे। -आव० निगा ६५८ सुधर्मा गणधर का परिनिर्वाण राजगृह नगर में हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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