SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्धमान जीवन - कोश २५४ ( गौतम ) तथा स्थविर आर्य सुधर्मा – ये दोनों ही महावीर के सिद्धिगत होने के पश्चात् मुक्त हुए । कालगत होते गए, उनके गण सुधर्मा के गण में अन्तर्भावित होते गये । नोट आर्यिका प्रतिजागरको वा साधुविशेषः समयप्रसिद्धः । - ठाण० स्था ४-३-३२३/टोका गणधर को साध्वियों का प्रतिजागरक कहा है । अत: सुधर्मा गणधर भी साध्वियों के प्रतिजागरक थे । गणधर का यह एक कार्य भी होता था कि वह साध्वीवृन्द को प्रतिजागृत रखने -- उन्हें संयम - जीवितव्य में उत्तरोत्तर गतिशील रखने में प्रेरक रहे, उनका मार्गदर्शन करे । ६ सुधर्म का कैवल्यकाल और परिनिर्वाण (क) तद्दिव से चेव सुहम्माइरियो जंबूसा मियादीणमणेयाणमाइरियाणं वक्खाणिददुवाल संगो घाइचक्कक्खएण केवली जादो । तदो सुहम्मभडारयो वि बारहवस्स णि । कसापा० भाग १ /गा० १ / पृ० ८४ जिस दिन गौतम स्वामी - इन्द्रभूति ने मोक्षपद प्राप्त किया- उसी दिन सुधर्माचार्य जंबूस्वामी अनेक आचार्यों को द्वादशांग का व्याख्यान करके चार घातिक कर्मों का क्षय करके केवली हुए । " तदनन्तर सुधर्म भट्टारक भी बारह वर्ष तक केवलिविहाररूप में विहार करके मोक्ष की प्राप्त हुए । (ख) तहिं वासरि उप्पण्णउ केवलु । तणिव्वाणइ जंबू - णामहु | मुणिहि सुधम्महु - पक्खालिय - मलु ॥ पंचमुदिव्व णाणु हय काम ॥ ज्यों-ज्यों गणधर इन्द्रभूति के निर्वाण के दिन सुधर्म गणधर को पापमल का प्रक्षालन करनेवाला केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । सुधनं स्वामी का निर्वाण होने पर काम को जीतनेवाने जम्बू नामक मुनि को वहीं दिव्यज्ञान अर्थात् केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । (ग) तम्मि कदकम्मणासे जंबूसामित्ति केवली जादो तत्थवि सिद्धिपवण्णे केवलिणो णत्थिअणुबद्धा ॥ -तिलोप० अधि/गा १४७७ गौतम, सुधर्मा और जम्बू का केवलि काल ६२ वर्ष का बताया है । Jain Education International - वीरजि० संधि ३/कड २ सुधर्मा स्वामी के कर्मनाश करने अर्थात् मुक्त होने पर जम्बू स्वामी केवली हुए । फिर जम्बूस्वामी के भो सिद्धि को प्राप्त होनेपर फिर कोई अनुबद्ध केवली नहीं रहे । वासट्ठी वासाणिं गोदमपहुदीण णाणवंताणं । धम्मपयट्टणकाले परिमाणं पिंडरूवेणं ॥ For Private & Personal Use Only तिलोप० गा १४७८ www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy