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________________ वर्धमान जीवन-कोश अथवा हे प्रभो ! मैं भ्रांत हो गया हूँ जिस कारण उन निरागी और निर्भय प्रभु के प्रति मैंने राग और ममता रखा है। वे राग और द्वेष संसार के हेतु है। उसका त्याग करने के लिए परमेष्ठी ने मेरा त्याग किया है। ममता रहित प्रभु में ममता रखने से हमारे कुछ भी नहीं हुआ। मुनियों को ममता रखना उचित नहीं है। इस प्रकार शुक्लध्यान में परायण होते हुए गौतम मुनि ने क्षपक श्रेणी को प्राप्त किया-फलस्वरूप घाती कर्म का क्षय होने से गौतम को केवलज्ञान प्राप्त हुआ। .६ इन्द्रभूति को कैवल्य ज्ञान : (क) जादो सिद्धो वीरो तहिवसे गोदमो परमणाणी । जादो तस्सिं सिद्धे सुधम्मसामी तदो जादो ॥१४७६॥ -तिलोप० अधि ४/गा १४७६ जिस दिन भगवान् महावीर सिद्ध हुए उसी दिन गौतम गणधर केवलज्ञान को प्राप्त हुए। पुनः गौतम के सिद्ध होने पर उनके पश्चात् सुधर्मा स्वामी केवली हुए। णिव्वुइ वीरि गलिय-मय-रायउ । इन्दभूइ गणि केवलि जायउ ॥ सो विउलइरिहि गउ णिव्वाणहु । कम्म - विमुक्कर सासय - ठाणहु ।। तहिँ वासरि उप्पण्णउ केवलु । मुणिहि सुधम्महु पक्खालिय-मलु ॥ -वीरजि० संधि ३/कड २ वीर भगवान् के निर्वाण प्राप्त करने पर मद और राग को विनष्ट कर इन्द्रभूति गणधर ने केवलज्ञान प्राप्त किया। वे अपने कर्मों से मुक्त होकर, विपुलगिरि पर्वत पर निर्वाणरूपी शाश्वत स्थान को प्राप्त हो गये । उसी दिन सुधर्म मुनि को पापमल का प्रक्षालन करनेवाला केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । .१० वर्धमान महावीर के पश्चात् धर्म का प्रवर्तन : (क) श्री गौतमः सुधर्माख्यः श्रीजम्बूस्वामिरन्तिमः । मोक्षं गते महावीरे त्रयः केवलिनोऽप्यमी ॥४॥ मध्ये द्वाषष्टिवर्पाणां जाता ये धर्मवर्तिनः । शरणं तत्क्रमाजानां तद्गुणार्थी व्रजाम्यहम् ॥४२॥ -वीरवर्धच० अधि १ भगवान् महावीर के मोक्ष चले जाने पर श्री गौतम, सुधर्मा और अंतिम जंबूस्वामी-ये तीन केवली- यहाँ पर बासठ वर्ष तक धर्म का प्रवर्तन करते रहे, अतः उनके गुणों का इच्छुक मैं उनके चरणकमलों की शरण को प्राप्त होता हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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