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________________ वर्धमान जीवन कोश-द्वितीय खण्ड-पंचम पुष्प-जो आपके सामने है। इसमें भगवान महावीर के पूर्व श्वेताम्बर मतानुसार २७ भव तथा दिगम्बर मतानुसार ३३ भवों का आगम तथा सिद्धांत ग्रंथों के आधार पर विवेचन है। इसमें भगवान् महावीर के इन्द्रभूति आदि ग्यारह गणधरों के जीवन पर भी प्रकाश डाला गया है। इस प्रकार जैन दर्शन समिति के द्वारा सैकड़ों विषयों पर कोश संकलन कार्य हुआ है। कोशों के संबंध में भारत के उच्चकोटि के विद्वानों ने मुक्त कंठ से सराहना की है। इनमें मुख्य रूप से १-स्व० प्रज्ञाचक्षु पंडित सुखलाल जी संघवी २-स्व० आदिनाथ नेमीनाथ उपाध्याय ३-डा० ज्योतिप्रसाद जैन ४-युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी ५-प्रो० दलसुख भाई मालवणिया ६-स्व. डा० सुनीतिकुमार चटर्जी ७ - प्रो० पद्मनाथ जैन U.S A. ८-प्रो० डा० L. ALSDROF, Hamburg आदि के नाम उल्लेखनीय है । इस प्रकार दशमलव प्रणाली के आधार पर करीब १००० विषयों पर आगम तथा प्राचीन भारतीय ग्रंथों का तलस्पर्शी अध्ययन करके स्व० श्री मोहनलालजी बांठिया व श्रीचंद चोरडिया ने पांडुलिपि तयार की। जिसको हमने सुरक्षित रखा है। ___ इस समिति में भारतीय दर्शन में रूचि लेने वाले सभी सज्जन सदस्य हो सकते हैं। संस्था में दो सदस्य श्रेणी है १-आजीवन संरक्षक सदस्य-जिसकी सदस्यता फीस १०००) है। उन्हें संस्था द्वारा प्रकाशित साहित्य बिना मूल्य सप्रेम भेंट किया जाता है। २-आजीवन साधारण सदस्य-जिसकी सदस्यता फीस सिर्फ १.१) है। सदस्य व्यक्तिगत रूप से ही लिये जाते हैं। माननीय जोधपुर निवासी श्री जबरमलजी भंडारी इस संस्था के सहयोगी और शुभचिन्तक है। उनके समयसमय पर अभूतपूर्व सुझाव मिलते रहे । कोशों के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग भरपूर रहा है। हमारी संस्था अब तक विद्ववद् योग्य सामग्री तयार करती रही है। अतः संस्था को जनप्रिय बनाने के लिये सरल भाषा में छोटी-छोटी पुस्तकें तैयार कराकर प्रकाशित करने की योजना है। और संभव हो तो उन्हें निःशुल्क वितरण की जाये। ___ अस्तु स्व० मोहनलालजी बाँठिया इस संस्था के संस्थापक ही नहीं थे, प्राण थे। वे इतने कोशों की रूपरेखा तैयार करके छोड़ गये हैं कि कई विद्वान वर्षों तक कार्य करे तो भी समाप्त न हो। ऐसे मनीषि की स्मृति में ठोस कार्य होना ही चाहिए। इस संस्था का पावन उद्देश्य जैन दर्शन व भारतीय दर्शन को उजागर करना है जिससे मानव ज्ञान रश्मियों से अपने अज्ञान अंधकार को मिटा सकें। इस संस्था द्वारा प्रकाशित साहित्य सस्ते दामों में वितरण कर अधिक से अधिक प्रचार हो-यही इसका उद्देश्य है। इस पुनीत कार्य में सबका सहयोग अपेक्षित है। भवदीय कलकत्ता नवरतनमल सुराना, अध्यक्ष १२-१२-८४ जैन दर्शन समिति ( 27 ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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