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________________ स दिव्यध्वनिना विश्व संशयच्छेदिना जिन: । दुन्दुभिध्वनिधीरेण योजनान्तग् यायिना || श्रावणस्यासिते पक्षे नक्षत्रेऽअभिजिति प्रभुः । प्रतिपद्यह्नि पूर्वान्हे शासनार्थ मुदाहरत् ॥ - हरिपु० सर्ग २, श्लो० ६०-६१ केवल दर्शन उत्पन्न होने के पूर्व विश्वार भगवान् के परिनिर्वाण के बाद गौतम स्वामी को केवलज्ञान करते हैं " राग और द्वेष संसार के हेतु है उसका त्याग करने के लिए - परमेष्ठी ( भगवान् महावीर ) ने हमारा त्याग किया होगा । इसलिए ऐसे ममता रहित प्रभु में ममता रखने से हमको क्या लाभ हुआ । रागद्वेषप्रभृतयः किं चामी भवहेतवः । हेतुना तेन च त्यक्तारतेनापि परमेष्ठिना ॥ २७६ ॥ निर्ममे नाथे ममत्वेन ममाऽप्यलम् । ममत्वं सममत्वेऽपि मुनीनां न हि युज्यते ॥२८०|| - त्रिशला का० पर्व १० / सर्ग १३ यदि अजातशत्रु के द्वारा राजगृह हस्तगत करने की तिथि ई० पू० ५४४ मानी जाय तो गौतम बुद्ध निर्वाण की तिथि ई० पू० ५०२ होगी । के महावीर के निर्वाण की तिथि उसके राज्यारोहण के १६ वर्ष पश्चात् है जो कि जैन परम्परा को विश्वसनीय मानना अनुचित नहीं है । जैन परम्परा के अनुसार महावीर के कैवल्य प्राप्त करने के लगभग तेरह वर्ष पश्वात् श्रेणिक बिम्बसार की मृत्यु हुई। अतः यह घटना ई० पू० ५४४ की रही होगी । अवंतीराज चंडप्रद्योत की मृत्यु महावीर के निर्वाण के कुछ दिनों के पहले हो चुकी थी, क्योंकि जैन परम्परा के अनुसार उसके उत्तराधिकारी और पुत्र पालक का राज्याभिषेक महावीर की निर्वाण रात्रि को हुआ था। प्रद्योत, मगध के शासक बिम्बसार और उसके पुत्र अजातशत्रु दोनों का ही समकालीन था । भगवान् महावीर के परम्परानुसार तीन पाट केवली हुए १ - गौतम स्वामी २ - सुधर्मा स्वामी - १३ - जभ्बू स्वामी सर्वज्ञ-सर्वदर्शी में हमने सामान्य केवली व तीर्थ कर को ग्रहण किया है । सर्वज्ञ - सर्वदर्शी वर्धमान तीर्थंकर का विषयांकन हमने ३५४ किया है। इसका आधार यह है कि सम्पूर्ण जैन वाङ् मय को १०० विभागों में विभाजित किया गया है। (देखें - मूल वर्गीकरण सूची पृष्ठ १०-१२ ) । इसके अनुसार जीवका विषयांकन ०३ है । जीव को ६० विभागों में विभक्त किया गया है ( देखें – जीव वर्गीकरण सूची पृष्ठ १३ ) इसके अनुसार वर्धमान का विषयांकन हमने ९२२४ किया है । इसका आधार इस प्रकार है जैन वाङमय के मूल वर्गीकरण में जीवका विषयांकन ०३ है तथा जोवनी ( महापुरुषों की जीवनी । के उपवर्गीकरण में तीर्थंकर वर्धमान का विषयांकन २४ है अतः जीवनी में विषयांकन ६२२४ किया है । वर्धमान सम्बन्धी तुलनात्मक अध्ययन के लिए हम कई असुविधाओं के कारण अन्य धर्मों के दार्शनिक ग्रंथों का सम्यक अध्ययन नहीं कर सके, केवल मज्झिम निकाय, अंगुत्तर निकाय, यजुर्वेद आदि का अध्ययन किया । उससे प्राप्त वर्धमान ( महावीर ) जोवनो सम्बन्धी पाठों को हमने दे दिया है । ( 24 ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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