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________________ वर्धमानजीवन-कोश मलय टीका-इन्द्रभुतेः सर्वायुर्द्विनवतिवर्षाणि, अग्निभूतेश्चतुः सप्ततिः. वायुभूतेः सप्ततिः व्यक्तस्यअशीतिः, सुधर्मस्य एक वर्षाशतं मंडिकस्य न्यशीतिः, मौर्यपुत्रस्य पंचनवतिर्वाणि, अकम्पिकस्याष्टसप्ततिः, अचलभ्रातुर्दासप्ततिः, मेतार्यस्य द्वाषष्टिः, प्रभासस्य चत्वारिंशत् , एवं क्रमेण गणधराणां सर्वायुष्कमिति । ग्यारह गणधरों की सर्वायु क्रमश: निम्न प्रकार थी - इन्द्रभूति की सर्वायु बाणवें वर्ष, अग्निमूति की चौहत्तर वर्ष, वायुभूति की सत्तर वर्ष, व्यक्त की अस्सी वर्ष सुधर्मा की एक सौ वर्ष, मंडित की व्यासो वर्ष, मौर्यपुत्र की पंचानवें वर्ष, अकम्पित की अठहत्तर वर्ष, अचलभाता की बहत्तर वर्षा, मेतार्य को बासठ वर्ण तथा प्रभास की चालीस वर्ष थी। .३३ सब गणधरों के शरीर के संहनन और संस्थान वजऋषभनाराच संहनन तथा समचतुरस्र संस्थान युक्त था। वजरिसहसंघयणा समचउरंसा य संठाणे। -आव० निगा ६५६ मलय टीका- सर्व एव गणधरा- x x x तथा वज्रर्षभसंहननाः समचतुरस्राश्च संस्थाने संस्थानविषये। इन्द्रभूति आदि सब गणधर समचतुरस्र संस्थान तथा वज्र ऋषभनाराच संहनन के धारक थे-युक्त थे। .३४ सब गणधर-लब्धि सम्पन्न थे। x x x सव्वेऽवि य सव्वलद्धिसंपन्ना। -आव० निगा ६५६/पूर्वार्ध--- मलय टीका-सर्वेऽपि सर्वलब्धिसम्पन्ना-आमाँपध्याद्यशेषलब्धिसम्पन्नाः। सर्व गणधर-सर्वलब्धि-आमर्षीषधि आदि अशेष लब्धि संपन्न थे। .३५ परिनिर्वाण के समय तप मासं पाओवगया सव्वेऽवि य मव्वलद्धिसम्पन्ना। --आव० निगा ६५६ मलय टीका-सर्व एव गणधरा मासं यावत् पादपोगमनगताः। परिनिर्वाण के समय इन्द्रभूति आदि सर्व गणधरों ने एक मास का तप किया-पादोपगमन संथारा ग्रहण किया । .३६ गणधरों की श्रुत साधना-आगम अध्ययन आगमद्वारप्रतिपादनाथमाहसव्व य माहणा जचा, मध्ये अज्झावयाविऊ। सव्वे दुवालसंगीआ, सव्वे चउदसपुग्विणो ॥६५७॥ -आव०निगा ६५७/भाग २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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