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________________ वर्धमान जीवन - कोश सोमशर्मा ब्राह्मण प्रतिबुद्ध हो गया । गौतम अपने कार्य में सफल होकर भगवान् के पास आ रहे थे । उनका मन प्रसन्न था । वे सोच रहे थे – मैं भगवान् को अपने उद्देश्य में सफल होने की बात कहूँगा । उन्हें इसका पता हो, फिर भी मैं अपनी ओर से बताऊंगा । वे अपनी कल्पना का ताना-बाना बुन रहे थे । इतने में उन्हें संवाद मिला कि भगवान् महावीर का निर्वाण हो गया । भगवान् महावीर की अन्तिम देशना सोलह प्रकार की थी। भगवान् छुट्ट भक्त से अन्तर्गत अनेक प्रश्न- चर्चाएं हुई। राजा पुण्यपाल ने अपने आठ स्वप्नों का फल पूछा । विरक्त हुआ और दीक्षित हुआ । हस्तिपाल राजा भी प्रतिबोध पाकर दीक्षित हुआ । ર २ भगवान की अन्तिम देशना ( अन्तिम रात्रि में ) - समणे भगवं महावीरे अंतिमराइयंसि, पणपण्णं अज्मयणाई कल्लाणफल विवागाइ, पणपण्णं अज्झणाणि पावफलविवागाणि वागरिता सिद्धे बुद्ध े मुत्ते अंतगडे परिणिन्वडे सव्यदुक्खपणे - समः सम ५५/०४/१० ८८६ टीका- 'अन्तिमरायंसि ' त्ति सुर्वायुःकालपर्यवसानरात्रौ रात्रेरतिमे भागे पापाय मध्यमाय नगर्यां हस्तिपालस्य राज्ञः करणसभायां कात्तिकमासामावास्यायां स्वातिनक्षत्रेण चंद्रमसा युक्त नागकरणे प्रत्युषसि पर्यं कासननिषण्णः पञ्चपञ्चाशदध्ययनानि 'वल्लाणफलविषागाइ " त्ति कल्याणस्य - पुण्यस्य कर्मणः फलं कार्य विपाच्यते - व्यक्ती क्रियते यैस्तानि वल्याणफलविपाकानि, एवं पापफलविपाकानि व्याकृत्य प्रतिपाद्य सिद्धो बुद्धः यावत्करणात् 'मुत्ते अंतकडे परिनिबुडे दुक्खनहीणे ति दृश्यं । 'पढ' त्यादि प्रथमायां त्रिंशन्नर कलक्षाणि द्वितीयायां पंचविंशतिरिति पंचपंचाशत् । 'दंसणे' त्यादि, दर्शनावरणीयस्य नव प्रकृतयो नाम्नोद्विचत्वारिंशत् आयुषश्चतस्र इत्येकं पंचपं नाशदिति उपोसित थे । देशना के उत्तर सुनकर संसार से श्रमण भगवान् महावीर अन्तिम रात्रि में पचपन अध्ययन पुण्यफल के विपाक वाले और पचपन अध्ययन पापफल के विपाक वाले प्ररूपित कर सिद्ध हुए, बुद्ध हुए यावत् सर्व दुःखों से रहित हुए । 'अंतिमरामं सित्ति' सर्व आयुष्य के काल की अन्तिम रात्रि में, रात्रि के अन्तिम प्रहर पापा नाम की मध्यमा नगरी में हस्तिपाल राजा को कार्य सभा में कार्तिक मास की अमावस्या में, स्वाति नक्षत्र में चन्द्र के रहते हुए, नाग नामक करण के रहते हुए, प्रातःकाल पर्यं कासन में बैठे हुए भगवान ने पचपन अध्ययन कल्याण के पुण्य कर्म के फल का, कार्य को प्रगट करने वाले कहे अध्ययन कहकर सिद्ध बुद्ध याक्त सर्व दुःखों से और इसी प्रकार पापफल को प्रगट करने वाले पचपन मुक्त हुए । '३ अथ तत्र सुराश्चक्र ुर्वप्रत्रितयभूषितम् । रम्यं ज्ञात्वा निजायु पर्यन्तमन्तिम देशनां प्रभुः । कर्त्तुं स्वामिनं समवसृतं ज्ञात्वाऽपापापुरीपतिः । हस्तिपालः समागत्य नत्वा च समुपाविशत् ||३|| समवसरणं स्वामिनो देशनासदः ॥ तस्मिन्नुपाविक्षत् सुरासुरनिषेवितः ||२|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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