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________________ वर्धमान जीवन-कोश धनुषा (रा) कारच्छिन्नो वारुण-वायव्य-सोमदिक्षु ततः। वृत्ताकृतिरीशाने पांडुस्सर्वे कुशाग्रवृताः ॥१६॥ कम्हि काले कहियमिदि पुच्छिदे सिस्साणं पच्चयजणण8 कालपरूवणा कीरदे । तंजहा- दुषिहो कालो उस्सप्पिणी ओसप्पिणी चेदि । जत्थ बलाउउस्सेहाणमुस्सप्पण्णं बुड्ढी होदि सो कालो उस्सप्पिणी । जत्थ तेसिं हाणी होदि सो ओसप्पिणी । तत्थ एक को सुसमसुसमादिभेएण छविहो । तत्थ एदस्स भरहखेत्तस्स ओसप्पिणीए चउत्थे दुस्समसुसमकाले णवहि दिवसेहि छहि मासेहि य अहियतेत्तीसवासावसेसे। तित्थुप्पत्ती जदा । उत्तंचइम्मिस्सेवसप्पिणीए चउत्थकालस्स पच्छिमेभाए। चोत्तीसवासावसेसे किंचि विसेसूण कालम्मि ॥२०॥ -कसापा० भा २/गा/५/टीका/पृ० ७३-७४ एदम्हि छावट्ठिदिवसूणकेवलिकाले पक्खित्ते णवदिवसछम्मासाहिय तेत्तीसवासाणि चउत्थकाले अवसेसाणि होति । छासहिदिवसावणयणं केवलकालम्मि किमट्ट कोरदे । केवलणाणे समुप्पण्णेवि तत्थ तित्थाणुष्पत्तीदो। दिव्यज्माणीए किमलु तत्थापउत्ती ? गणिदाभावादो। सोहमिदादेण तक्खणे चैव गणिदो किण्ण ढोइदो ? ण; काललद्धीए विणा असहेजस्स देविंदस्स तड ढोयणसत्तीए अभावादो । सगपादमूलम्मि पडिवण्णमहव्वयं मोत्तण अण्णमुदिस्सिय दिवज्झुणी किण्ण पयट्टदे ! साहावियादो। ण च सहाओ पर पज्जणिओगारुहो; अव्ववत्थावत्तीदो । तम्हा चोत्तीसवासावसेसकिंचिविसेसूणचउत्थकालम्मि तित्थुप्पत्ती जादेत्ति सिद्ध। - कसापा० गा १/टीका/भाग १/पृ० ७५-७६ पटवष्टि दिवसान् भूयो मौनेन विहरन् विभू: । आजगाम जगत्ख्यातं जिनो राजगृहं पुरम् ।। आरुरोह गिरि तत्र विपुलं विपुलश्रियम् । प्रबोधार्थ स लोकानां भानुमानुदयं यथा ।। श्रावणस्यासि ते पक्षे नक्षत्रेऽभिजिति प्रभुः। प्रतिपद्यह्नि पूर्वाह्न शासनार्थमुदाहरत् ।। -हरिपु० २, ६१ आदि जिन्होंने धर्मतीर्थ की प्रवृत्ति करके समस्त प्राणियों को नि संशय किया, जो वीर है अर्थात् जिन्होंने विशेष रूप से समस्त पदार्थ-समूह को प्रत्यक्ष कर लिया है, जो जिनों में श्रेष्ठ है तथा राग, द्वेष और भय से रहित है-ऐसे भगवान महावीर धर्मतीर्थ के कर्ता है। प्र०-भगवान् महावीर ने धर्मतीर्थ का उपदेश कहाँ पर दिया। समाधान-जब महामंडलीक श्रेणिक राजा अपनी चेलना रानी के साथ सकल पृथिवी मंडल का उपभोग करता था। जब मगध देश के तिलक के समान राजगृह नगर की नैऋत्य दिशा में स्थित तथा सिद्ध और चारणों के द्वारा सेवित विपुलगिरि पर्वत के ऊपर बारह गणों अर्थात् सभाओं से परिवेष्टित भगवान महावीर ने धर्मतीर्थ का कथन किया। कहा भी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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