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________________ १४१ वर्धमान जीवन कोश वन्तरभवणिन्दाणं ८, वक्खारेसु य हवंति परिसाओ । सोहम्माईण तओ, देवाणं कप्पवासीणं १० ।। ५८॥ अवरम्मि य वक्खारे, परिसा मणुयाण नरवरिन्दाणं ११ । होइ तिरिक्खाण पुणो, परिसा पुव्वुत्तरे भागे।। १२ ।। ५६ ।। एवं पसन्नचित्त, सुरवरमेलीणपस्थिवसमूहे । पुच्छइ धम्मा-ऽधम्म, तित्थयरं गोयमो नमिउ।। ६० ।। तो अद्धभागहीए, भासाए, सव्वजीवहियजणणं । जलहरगंभीरखो, कहेइ धम्मं जिणवरिंदो ॥ ६१ ।। -पउच० अधि० २/ गा ५० से ६१ एकयोजनविस्तीर्ण सुवृत्तं भ्राजते तराम् । सुरेन्द्रनीलरत्नौधैस्तस्याद्य पीठमूर्जितम् ॥ ६६ ॥ भो विंशतिसहस्राङ्कमणिसोपानराजितम् । मुक्त्वा सार्धद्विगब्यूति भूमेनभसि संस्थितम् ॥ ७० ।। तस्य पर्यन्तभूभागमलंचक्रऽतिदीप्तिमान् । धूलोशालपरिक्षेपो रत्नपांशुमयो महान् ॥ ७१ ।। क्वचिद्-विद्रुभरम्याभः क्वचित्काञ्चन संनिभः। क्वचिदञ्जनपुञ्जाभः क्वचिच्छुकच्छदच्छविः ।। ७२ ।। नानासुवर्णरत्नोत्थपांसुतेजश्चयः क्वचित् । तन्वन्निवेन्द्रचापानि हसन वा खे स राजते ।। ७३ ।। चतुर्दिश्वस्य दीप्त्याढ्या हेमस्तम्भाप्रलम्बिताः तोरणा मकरास्फोटमणिमाला विमान्यहो ।। ७४ ।। ततोऽन्तरान्तरं किंचिद्गत्वा_म्बुपवित्रिताः । स्युश्चतस्रो जगत्यो हि वीथीनां मध्यभूमिषु ॥ ७५ ।। चतुर्गापुरसंयुक्तप्राकारत्रयवेष्टिताः। हेमषोडशसोपानयुता दीपा मनोहराः ॥ ७६ ।। तासां मध्येषु भान्त्युच्चस्तत्प्रमाः पीठिकाः पराः। जिनेद्रप्रतिमायुक्ता मणितेजोऽर्चनादिभिः ॥ ७७ ।। -वीरवध च० अधि १४/ श्लो ६६ से ७७ कुबेर आदि महाशिल्पियों द्वारा निर्मित समवसरण मंडल वह समवसरण गोलाकार एक योजन विस्तार वाला था, उसका प्रथम पीठ उत्तम इन्द्र नीलमणियों से रचा गया था-अतः वह अत्यन्त शोभायमान हो रहा था। हे भव्यों, वह बीस हजार मणिमयो सोपानों ( सीढ़ियों ) से विराजित था और भूतल से अढाई कोश ऊपर आकाश में अवस्थित था। उसके किनारे के भू-भाग के सवं ओर अतिदीप्तिमान रत्नधूलि से निर्मित विशाल धूलि. शाल नामका पहला परकोटा था। वह कहीं पर विद्र म ( मूगा ) की सुन्दर कांति वाला था, कहीं सुवर्ण आभावाला था, कहीं अंजनपुञ्ज के समान काली आभावाला था और कहीं पर शुक ( तोता ) के पंखों के समान हरे रंग बाला था। कहों पर नाना प्रकार के रत्न और सुवर्णोत्पन्न धूलि के तेजपुञ्ज से आकाश में इन्द्रधनुषों की शोभा को विस्तारता अथवा हंसता हुआ शोभित हो रहा था। उसको चारों दिशाओं में दीप्ति-युक्त सुवर्ण स्तंभों के अग्रभाग पर मकराकृति मणिमालावाले चार तोरण द्वारा सुशोभित हो रहे थे। उसके भीतर कुछ दूर चल कर घोथियों की मध्य भूमि में पूजन-सामग्री से पषित्रित चार वेदियाँ थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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