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________________ बर्षमान जीवन-कोश वर-सुरग-सुजाय-सुगुज्म-देसे आइण्ण-हउव्व-णिरुवलेवे, वरवारण-तुल्ल विक्कम विलसिय-गई गयससण-सुजाय-सन्निभोरु समुग्ग-णिमग्ग-गूढजाणू एणी - कुरूविंदावत्त - वट्टाणुपुब्व - जंघे संठिय सुसिलिट्ठ गूढगुप्फे सुप्पइट्ठिय कुम्भचारूचलणे अणुपुव्व सुसंहयंगुलीए उण्णय-तणु-तंब-णिद्ध-णक्खे भरतप्पलपत्त-मउय-सुकुमाल-कोमलतले अट्ठसहस्सवरपुरिसलक्खणधरे, नग-नगर-मगर-सागर चक्कंक-वरंक मंगलंकिय-चलणे विसिट्ट-रूवे हुयवह निख़्म-जलिय - तडितडिय-तरूण रवि-किरण-सरिस-तेए, अणासवे अममे अकिंचणे छिन्नसोए निरूवलेवे ववगय-पेम-राग-दोस-मोहे, निग्गंथस्स पवयणस्स देसए सस्थनायगे पइट्टावए, समणगपई समणग विंद परिअट्टए, चउतीस बुद्ध यणतिसेस पत्ते पणत्तीस-सच्च वयणतिसेस पत्ते, -आव० सं० २० - अत्यन्त ठोस या सघन, स्नायुओं से अच्छी तरह से बंधा हुआ, श्रेष्ठ लक्षणों से युक्त, पर्वत के शिखर, के बाकार वाला और पत्थर की गोल पिण्डी के समान (भगवान् का) शिर था। सेमल वृक्ष के फल जो कि रूई भरा हुआ हो, उसके फटे हुए अंश से रूई बाहर निकाली हुई हो उसके समान कोमल, सुलझे हुए, स्वच्छ और से या पतले-सूक्ष्म, लक्षणयुक्त सुगन्धित, सुन्दर, भुजमोचक रत्न भृगकोट, नील-विकार, काजल और अत्यन्त मोरे के समान काले और लटों के समूह से एकत्रित पूंघराले छल्लेदार बाल (प्रदक्षिणावतं ) शिरपर थे। समीप में केश के उत्पत्ति के स्थान की त्वचा दाडिम के फूल के समान प्रभायुक्त की, लाल सोने के समान "निर्मल पी और उत्तम तेल से सिञ्चित-सी थी। उनका उत्तमांग धन, भरा हुआ और छत्राकारा था। ललाट आधे वांद के समान, घाव आदि के चिह्न से रहित मनोज्ञ ओर शुद्ध था। नक्षत्रों के स्वामी पूर्ण चन्द्र के समान सौम्य मुख था। मनोहर या संलग्न या मालीन से युक्त कान थे, अत: वे सुशोभित थे। दोनों गाल मांसल और भरे हुए थे। भौंहे कुछ झुके हुए धनुष के ( टेडी ) सुन्दर और काले बादल की रेखा के समान पतली, काली और कांति से युक्त थी। नेत्र खिले हुए किमल के समान थे। आँखें बरौनी से युक्त धवल थीं। इस प्रकार शोभित थीं मानों कुछ भाग में पत्तों से सले हुए कमल हों। नाक गरुड़ के समान लम्बा, सीधा और ऊँचा था। संस्कारित-शिलाप्रवाल और के समान अधरोष्ठ थे। दातों की श्रेणि निष्कलंक चन्द्रकला, निर्मल से भी निर्मल शंख गाय के दूध, के फूल, जलकण और कमलनाल के समान सफेद थो। दांत अखण्ड, अजर्जर ( मजबूत ), अविरल (परहै हुए दो दांतों के बोच का अन्तर अधिक नहीं हो ऐसे ), सुस्निग्ध और सुन्दराकार थे। एक दांत की श्रेणि दांत थे। तालु और जीभ के तले अग्नि के ताप से मल रहित, जल से धोए हुए और तपे हुए सोने के समान । भगवान् को दाढ़ी-मूछे कभी न बढ़ती थो-सदा एक सी रहती और सुन्दर ढंग से छटी हुई सी राम्य थी। ( ठुड्डो ) मांसल, सुन्दशाकार, प्रशस्त और व्याघ्र को चिबुक के समान विस्तीर्ण थी। द्विीता श्रेष्ठ शंख समान ( सुन्दर ) और चार अंगुल की उत्तम प्रमाण से युक्त थी। स्कंध-खंधे श्रेष्ठ भैसे, सूअर, बाघ, प्रधान हाथी और वृषभ (खंधे ) के समान प्रमाण से युक्त सभी विशेषताओं से सम्पन्न और विशाल उनके बाहू गाड़ी के जुड़े के समान, मोट, देखने में सुखकर और दुर्बलता से रहित-पुष्ट पोंचों से युक्त थे। बाहू Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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