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________________ १०८ वर्षमान जीवन-कोश मलयटोका-अस्या व्याख्या--पुष्पोत्तराच्च्युतो ब्राह्मणकुडप्रामे नगरे कोडालसगोत्रो ब्राह्मणः सोमिला भिधानोऽस्ति, तस्य गृहे उत्पन्नः देवानन्दायाः कुक्षाविति । इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में ब्राह्मणकुण्ड नामक एक ब्राह्मण लोगों का ग्राम पा। वहां कोडाल गोत्र में उत्पा ऋषभनाप सोमिल नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसके देवानन्दा नामक एक जालंधर कुल की स्त्री थी। आषाड मास की शुक्ल षष्ठी-हस्तोत्तरा नक्षत्र में नन्दन मुनि का जोव दश देवलोक से च्यवन कर देवानन्द की एक्षि में अवतरित हुआ। जिस दिन वे देवानन्दा के गर्भ में आये तभी से ऋषभदत्त को मोटी ऋद्धि की प्राप्ति हुई। तीन जगत् के गुरू महत् कभी भी तुच्छ कुल में, दारिद्र कुल में या भिक्षुकुल में उत्पन्न नहीं होते परन्तु पुरुष सिंह समान शीप में मोती के समान इक्ष्वाकु आदि क्षत्रिय वंश में ही उत्पन्न होते हैं । भगवान् नीच कुल में उत्पन्न हुए है-यह असगत बात है। परन्तु प्राचीन कर्मों को जन्यथा करने में भगवान भी समर्थ नहीं है। भगवान ने मरीचि के भव में कुलमद किया था-इस कारण नीच गोत्र कर्म का उपार्जन किया था। अस्तु शकेन्द्र ने सोचा कि कर्म के वशीभूत हुए नीच कुल में उत्पन्न हुए अर्हतो को किसी महा कुल में ले जाने का पवंदा हमारा अधिकार है। ३३ ख-त्रिशला गर्भ ( सिद्धार्थ राजा की पत्नी) १ गर्भ विवेचन १ एवंच पवढमाणम्मि गम्भे गएसु वासीदिणेसु ताव चलियासोहिप्पओएणमुराहिवइणा मुणिओ भयवो गब्भसंभवो। चिंतिउंच पयतो-एवं बिहा महाणुभावा ण तुच्छकुलेषु जायन्ति । ति चितिऊण अवहरिओ बंभणीओ ( ए ) गम्भाओ भयवं। पक्खित्तो इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे उत्तुङ्गधवलपासायसिहरोवसोहीए तीर ( ? खत्तिय ) णगराहिहाणे पुरवरे xxx। अण्णया य गामाणुगाम गच्छमाणो कीलाणिमित्तमागओ णियभुत्तिपरिसंठियं कुंडपुरं णाम जयरं। जहाविहावयारेण पविट्ठो णिययमंदिरं। आगओ सयलो वि पुरजणवओ दंसणत्थं । सम्मागियविसज्जियम्मि पउरलोए विसिढविणोएण अइवाहिऊण दिणसेसं पसुत्तो वासभवणम्मि । णिवण्णा तयन्तिए देवी । समागया सुहेणणिद्दा । तओ पहायप्पायाए रमणीए चउद्दसमहासुविणाणुकूललाभरांसूइओ समुप्पण्णो आसोयतेरसीए हत्थुत्तराहिं तिसलादेवीए गब्भम्मि। -चउप्पण्ण पृ० २७० २ ताओ गं समणस्स भगवओ महावीरस्स अणुकंपए णं देवेगं 'जीयमेय' ति xxx तस्सणं भासोयबहुलस्स तेरसीपक्खेणं xxx जेवि य से तिसलाए खत्तियाणीए कुच्छिंसि गम्भे, तंपि य दाहिणमाहणकुडपुरसन्निवेसंसि उसभदत्तस माहणस्स कोडाल-सगोतस्स देवाणंदाए माहगीए जालंधरायणसगोताए कुच्छिसि साहरइ। -भाया० श्रु २/ अ १५/सू ५, ६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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