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________________ १०४ वधमान जीवन-कोश __इन्द्र कुबे य स कहते हैं कि हे कमल-नयन यश, इन्हीं राजा सिद्धार्थ' और रानी प्रियकारिणी के शुभ लक्षणों से युक्त मदिरादि व्यसनों का त्यागो पुत्र चौबीसवाँ तीर्थ कर होगा, जिसके चरणों में इन्द्र भो नमन करेंगे। (ग) आसाढ - मासि ससिहर - पयासी । पक्खंतरालि हय - तिमिर - जालि ।। दिस · णिम्मलम्मि छट्ठी - दिणम्मि। संसार - सेउ थिउ गब्भि देउ । संपण्ण - हिहि कण - कणय - विट्टि। जक्खेण ताम णव · मास - जाम । -वीरजि० संधि १ । कड६ आषाढ़ मास के चन्द्र से प्रकाशमान व अन्धकार समूह को दूर करने वाले शुक्ल पक्ष में छट्ठी तिथि के दिन जब दिशाएं निर्मल थीं, तब संसार के सेतुभूत भगवान महावीर, माता के गर्भ में आकर स्थित हुए। तब से नव मास तक धरणन्द्र यक्ष आनन्ददायी स्वर्ण की दृष्टि करता रहा । (घ) अथेह भारते क्षेत्र विदेहाभिध ऊर्जितः। देशः सद्धर्मसंघाद्य विदेह इव राजते ॥ २ ॥ x इत्यादि वणनोपेतदेशस्याभ्यन्तरे पुरम् । कुण्डाभिधां विराजेत नाभिवद्धाभिकैमहत् ॥ १० ॥ पतिस्तस्य महीपालः श्रीमान् सिद्धार्थसंज्ञकः । आसीत् काश्यपगोत्रस्थो हरिवंशनभोंऽशुमान् ॥ २२ ॥ X x तस्याभवन् महादेवी सन्नाम्ना पिकारिणी। अनौपम्यगुणवातैर्जगतां पुण्यकारिणी ।। २८ ।। गजेन्द्राकारमादाय भवस्यास्यप्रवेशनात् । त्वद्गर्ने निर्मले तीर्थेऽन्तिमोऽवतरिष्यति ।। १०३ ॥ तदैवाषाढमासस्य शुक्ल षष्ठी दिने शुचौ। उत्तराषाढनक्षत्र शुभे लग्नादिक सति ।। ११० ।। सोऽमरेन्द्रोऽच्युताच्च्युत्वा धर्मध्यानेन धर्मकृत् । सुगर्भ प्रियकारिण्याः शुचौ पुण्यादधातरत् ॥ १११ ।। -वीरवध मानच० अधि ७ इस भारत वर्ष में विदेह नामक एक विशाल देश है, जो श्रेष्ठ धर्म और मुनिश्वरों के संघादि से विदेह क्षेत्र के समान शोभायमान है । इत्यादि वर्णन से संयुक्त उस देश के भीतर नाभि के समान मध्यभाग में कुण्डपुर नामक महान नगर विराजमान है। उस कुण्डपुर के स्वामी श्रीमान् सिद्धार्थ नामवाले महिपाल थे, जो काश्यप गोत्री, हरिवंश रूप गगन के सूर्य थे। उस सिद्धार्थ नरेश की रानी 'प्रियकारिणी' इस उत्तम नामवाली महादेवी थी। जो अपने अनुपम गुण समूह से जगत् की पुण्यकारिणी थी। सिद्धार्थ ने प्रियकारिणी को कहा-मुख में प्रवेश करते हा गजेन्द्र के देखने से आपके निर्मल गर्भ में अन्तिम तीर्थकर गजेन्द्र के आकार को धारण करके अवतरित होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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