SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्षमान जीवन-कोश ६३ टीकार्य-भगवान महावीर स्वामी पूर्व भव में पोट्टिल नाम के राजपुत्र थे- उस भव में एक करोड़ वर्ष प्रव्रज्या सन किया। (प्रथम भव ) -वहां से देव हुए ( दूसरा भव) -वहाँ से नन्दन नाम के राजपुत्र छत्राग्रनगरो में हुए-(तीसरा भव ) -उस भव में लाख वर्ष तक सबंदा मास क्षमण तप कर दशवे देवलोक में पुष्षोत्तर-वरविजयपुण्डरीक नाम न में देव हुए ( चतुर्थ भव ) -वहाँ से ब्राह्मणकुण्डग्राम में ऋषभदत्त ब्राह्मण की पत्नी-देवानदा की कुक्षि से उत्पन्न हुए (पांचवां भघ ) 1-और वहाँ से तिरास दिन क्षत्रिय कुण्डग्राम नगर में सिद्धार्थ महाराजा को त्रिशला नामकी भार्या की | इन्द्र के वचन को पालन करने वाला हरिणेगमेषी नामक देव ने संहरण किया और तीर्थंकर रूप में उत्पन्न हुए भव ) अतः तीर्थकर के भव ग्रहण करने से छट्ठा पोट्टिल का भब ग्रहण किया गया है। प्रियमित्तचक्कवट्टी मुया विदेहाइ चुलसीइ ॥ -आव• निगा ४४८ उत्तरार्ध मलय टीका-अपर विदेहे मूकायां राजधान्यां धनञ्जयनृपतेर्धारणिदेव्याः प्रियमित्राभिधानश्चक्रवर्ती संमः, तत्र चतुरशीतिपूर्वसहस्राण्यायुष्कमासीदिति । पुत्तो धणंजयस्सा पुट्टिल परियाउ को डि सव्वट्ठ । -आव० निगा ४४६ पूर्वार्ध मलय टीका-तत्रासौ प्रियमित्रः पुत्रो धनब्जयस्य धारणिदेव्याश्च भूत्वा चक्रवर्तिभोगान् मुक्त्वा चित् सब्जातसंवेगः सन 'पोट्टिल' इति प्रौष्टिलाचार्यसमीपे प्रव्रजितः, 'परियाओ कोडि सव्वट्ठ'त्ति बापर्यायो वर्षकोटिबभूव xxx। । भगवान महावीर का जीव कतिपय तिर्यञ्च-मनुष्य भव करके अपर विदेह में मूका साजधानी के राजा धनञ्जय गारणि रानी की कुक्षि में उत्पन्न हुए। वहाँ प्रियमित्र नाम से चक्रवर्ती राजा हुए और भोग भोगे तथा कदा उत्पन्न होने से प्रौष्टिलाचार्य के समीप दीक्षित हुए तथा एक कोटि वर्ष की श्रमण-पर्याय का पालन किया । चौरासी लाख पूर्व का आयुष्य था। एकदा पोट्टिलाचार्य उद्याने समवासरत् । धर्म तदन्तिके श्रुत्वा राज्ये न्यस्य स्वमात्मजम् । स प्रवत्राज तेपे च वर्षकोटी तपः परम् । पूर्वलक्षचतुरशीत्यायुः संन्यासपूर्वकम् । मृत्वा शुक्रस सर्वार्थविमाने त्रिदशोऽभवत् ॥ २१६ ॥ -त्रिशलाका० पर्व १०/सर्ग १/श्लो० २१४ उत्तरार्ध २१५, २१६ एक समय मुकानगरी के उद्यान में पोट्टिल नामक आचार्य का पदार्पण हुआ। उनके पास से धर्म सुना फल -पुत्र को राज्य पर बैठा कर उमसे दोक्षा ग्रहण को । और एक कोटि षष तक उत्कृष्ट तप किया। सर्वायुष्य सी लाख पूर्व का क्षयकर महाशुक्र देवलोक के सर्वार्थ नामक विमान में देव हुए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy