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________________ वर्षमान जीवन कोश इसके बाद प्रियमित्र चक्रवर्ती गजरत्न पर आरूढ़ होकर उसके दक्षिण कुम्भ-स्थल के ऊपर प्रकाश के लिए मणिरत्न को छोड़कर तमिस्रा गुफा में बैठा। वहाँ काकणी रत्न से गुफा की दोनों बाजु की तरफ प्रकाशाथं सूर्यमण्डल-ऐसा मांडले करता हुआ चक्रवर्ती चक्र के अनुसार चला । इसके बाद उन्मग्ना और निमग्ना नदी पर पाज ( पाल ) बंधायी। वह नाप से नदी पार कर स्वयं के मेल उधड़ी गया हआ वह गफा के उत्तर द्वार से चक्रवर्ती बाहर निकला। वहाँ चक्रवर्ती ने आपात जाति के किरात लोगों को जीत लिया और सेनापति के द्वारा गंगानदी की प्रथम निष्कूट संधाया। स्वयं अष्टम भक्त कर गंगादेवी को साधा। इसके बाद गुफा के अधिष्टायकदेव को सेनापति के पास से सिंधु नदी का दूसरा निष्कूट सधाया । चक्ररत्न के अनुसार वहाँ से वापस फिरकर वेताब्यगिरि के पास आया। वहाँ पैताठ्यगिरि के ऊपर की दोनों श्रेणी के विद्याधरों को वशीभूत किया। बाद में खंडप्रपाता गुफा के अधिष्टायक देव को साधकर सेनापति के पास से गुफा के द्वार खोलकर चक्रवर्ती सैन्य सहित वैताड्यगिरि के बाहर निकला। तत्पश्चात् प्रियमित्र चक्रवर्ती ने अष्टम तप किया--जिससे नैसर्प आदि नवनिधि उसके वशीभूत हुई। इसके बाद सेनापति के पास से गंगा का दुसरा निष्कूट साधकर-छः खंड पर विजय प्राप्तकरा प्रिय मित्र चक्रवर्ती मूका नगरी आये। वहाँ देवों और राजाओं ने एकत्रित होकर बारह वर्ष के महोत्सवपूर्वक उसका चक्रवर्तित्व का अभिषेक किया। तत्पश्चात् राजा ने नीतिपूर्वक पृथ्वी का पालन करने लगा। .३- एक विवेचन (क) अथ सद्धातकीखण्डे द्वीपे पूर्वाभिधानके । विदेहे पूर्वसंज्ञऽस्ति विषयः पुष्कलावती ।। ३५ ।। प्रागुक्तवर्णना तत्र नगरी पुण्डरीकिणी। महती शाश्वता दिव्याचक्रिभोग्याहिविद्यते ।। ३६ ।। पतिस्तस्याः सुमित्राख्यो नरेशोऽभूत् सुपुण्यवान् । राज्ञीतस्याभवद्रम्या सुव्रताख्या व्रताङ्किता ॥३७॥ महाशुक्रास आगत्य देवोऽतिदिव्यलक्षणः । प्रियमित्राभिधो जातस्तयोः पुत्रोजगत्प्रियः ।। ३८ ।। यौवनं तु महामण्डलेश्वरश्रीसमन्वितम् । पितुः पदं समाप्यैष भुनक्ति सुखमुल्वणम् ॥ ४४ ।। तदास्याद्भुतपुण्येन प्रादुरासन् स्वयं क्रमात् । चक्रादि सर्व रत्नानि निधयोनव चोजिताः ।। ४५ ।। अस्यासन् परपुण्येन खभूचरनृपात्मजा। षण्णवति-सहस्राणि रूपलावण्यखानयः ॥ ५० ॥ - + Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgi
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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