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________________ ८६ वर्धमान जीवन कोष तत्पश्चात् चक्र के मार्ग के अनुसार छह खण्ड पर विजय करने के लिए चला । प्रथम पूर्वाभिमुख चलकर मागध तीर्थ आया । •२ प्रियमित्र चक्रवर्ती की छह - खंड पर विजय (क) — मागध तीर्थ पर विजय प्रियामिव भुवं पातुः प्रियमित्रस्य भूपतेः । चतुर्दश महारत्नान्युदपद्यन्त च क्रमात् ॥ १८८ ॥ षट्खंड विजयं जेतु चक्रमार्गानुगोऽचलत् । गत्वा च पूर्वाभिमुखं मागधं तीर्थमासदत् ॥ १८६ ।। कृत्वाऽष्टमतपस्तत्र चतुरङ्गचमूवृतः । चतुर्थान्ते रथारूढः किञ्चिद् गत्वाऽग्रहीद्वनुः ॥ १६० ॥ मागधतीर्थकुमारं समुद्दिश्य महाभुजः । कंकपत्र स्वनामांक गरुमन्तमिवाक्षिपत् ॥ १६९ ॥ योजनानि द्वादशेषः सलंघित्वा विहायसा । पुरो मागधदेवस्य पपातोत्पातवत्रवत् ।। १६२ ।। बाणो मुमूर्षुणा केन क्षिप्त इत्यभिचिन्तयन् । मागवेशो रुषोत्थाय तं जग्राह शिलीमुखम् || १६३ ।। चक्रिनामाक्षर श्रेणीं वीक्ष्य शान्तीभवन् क्षणात् । उपायनान्युपादाय प्रियमित्र स आययौः ।। १६४ । आज्ञाधस्तवास्मीति जल्पन् व्योमस्थितो नृपम् । पूजयामास विविधोपायनैः स उपायवित् । ६५ ।। तं सत्कृत्य विसृज्याथ वलित्वा पारणं व्यधात् । चक्री मागधदेवस्य चक्रे चाष्टाह्निकोत्सवम् ।। १९६ ।। त्रिशलाका० पर्व १० / सर्ग १ प्रिया की तरह भूमिका पालन करता हुआ प्रियमित्र राजा को अनुक्रमतः चतुर्दश महारत्न उत्पन्न हुए। बाद में चक्र के मार्गानुसार षट्खण्ड पर विजय करने के लिए चल पड़ा । सर्वप्रथम पूर्वाभिमुख चालकर मागध तीर्थं आया। वहाँ अष्टम तप कर चतुरंग सेना सहित पड़ाव किया। अष्टम तप के अंत में यथारूढ़ होकर थोड़ी दूर जाकर उसने धनुष्य हाथ में लिया। बाद में महाभुज मागध तीर्थं कुमार का उद्देश कर स्वयं के नाम से अंकित गरूड़ की तरह एक बाण उसके ऊपर फेंका। वह बाण बाहर आकाश में योजनपर्यन्त जाकर मागध देव के सामने उत्पात वज्र को तरह पड़ा । उस समय " मरण की इच्छा रखने वाला यह वाण किसने फेंका है ऐसा चिन्तन करता हुआ मागध देव क्रोध से उठकर उस बाण को हाथ में ग्रहण किया । फलस्वरूप उस बाण के ऊपर चक्रवर्ती के नाम की अक्षर की श्रेणी देखकर वह क्षणभर में शांत हो गया ।" - बाद में बहुत सारी भेंट लेकर वह प्रियमित्र चक्रवर्ती के पास आया और 'मैं तुम्हारा आज्ञाधारी हूं' ऐसा बोलता हुआ आकाश में उभा रहा। उपाय जानने वाला उसने विविध प्रकार की भेंटों से चक्रवर्ती की पूजा की। बाद में चक्रवर्ती ने उसे सम्मानित कर विदा किया और स्व प्रियमित्र चक्रवर्ती वापस आकर अष्टम भक्त का पारण किया । उसी प्रकार उसने मागध देव के निमित्त वहाँ अट्ठाई उत्सव किया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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