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________________ वर्धमान जीवन - कोश ६६ मिथो युयुधिरे सैन्याः पक्षयोरुभयोरपि । सांवर्तिका इवाम्भोदा आस्फलन्तः परस्परम् ।। १६५ ।। क्षीणक्षीणेषु सैन्येषु सैन्ययुद्ध' निषिध्य तौ । अश्वमीवस्त्रिपृष्ठश्चायुध्येतां रथिनौ स्वयम् ।। १६६ ।। मोघीकृतास्त्रोऽश्वत्रवोऽरिग्रीवोच्छेदलम्पटम् । त्रिपृष्ठायामुचच्चक्र हाहाकारिजनेक्षितम् ।। १६७ ।। त्रिपृष्ठरःस्थले चक्र तुम्बेन निपपात तत् । शरभो रभसोद्भ्रान्त इव पर्वतसानुनि ।। १६८ ।। वीरप्रष्ठस्त्रिपृष्टोऽथ तेन चक्रेण लीलया । चकर्त हयकंठस्य कंठमंभोजनालवत् ॥ १६६ ॥ - त्रिशलाका० पर्व १० / सर्ग १ (ख) तस्स घोडयग्गीवरस कहेह, जहा अच्छसु वीसस्थो, तेहिं गंतूण सिट्ठ रूडो, दूय विसज्जेइ एए पुत तुमं मम अलग्गार पट्ठवेहि, तुमं महल्लो, जाहे पेच्छामि सक्कारेमि रज्जाणि य देमि, तेणभणियंअच्छंतु कुमारा, सयं चेत्र णं ओलग्गामित्ति, ताहे सो भणति किं न पेसेसि ? पेसेहि आउ जुज्झसज्जो निग्गच्छेति, सो दूओतेहिं आधरिसित्ता धाडिओ, ताहे सो आसग्गीवोसव्वबलेणउवडिओ, इयरेऽवि देसंते ठिया, सुबहु कालं जुज्झिऊण हयगय रहनरादिक्खयं च पिच्छिऊण कुमारेण दूओ पेसिओ, जहाsह च तुमंच दोन्निवि जुद्धं संपलग्गामो किं च बहुएणअकारिजणेण मारिएण ? एवं होऊन्ति, बिइयदिवसे रहेहिं संपलग्गा, जाहे आउहाणि खीणाणि ताहे चक्कं मुख्यइ, तं तिविट्ठ, स्स तु बणउरे पडियं, तेणेव सीसं छिन्नं । xxxतिविट्ठ, चुलसीति वाससय सहस्साई सव्वाउवं पालइत्ता कालमासे कालं काऊ सत्तमा पुढत्रीए अप्पतिट्ठाणे नरए तेत्तीस सागरोवमहितीओ नेरइओ उववन्नो । - आव० निगा ४४५ / मलयटीका में उद्धृत (ग) XXX | तओ जुज्झिऊण सञ्चाहेहि ओहा मज्जन्तेण आसग्गीवेण गहियं चक्करयणं करयलेणं । भभाडिऊणं च संपेसियं तिविट्ठणो । तं च देववाणुहावेण भवियन्वयाणिओएण य पयाहिणी काऊण ठियं दाहिणकरयले तिविणो । तेणावि अमरिसवसाबूरियहिएणं पेसियं आसग्गीवरस | तेणावि चक्केणं तालफलं व पाडियं सोसं पडिवासुदेवस्स त्ति । उच्छलिओ जयजयारखो । तुहिय तियसा-सुरेहिं मुक्कं कुसुमवरिसं । साहुक्कारिओ सयलजणेणं । भणियंच सुरसमूहेहिं - एस पढमो वासुदेव समुप्पण्णो । अश्वग्रीव राराजा अब त्रिपृष्ठ की शंका को प्राप्त होने लगा। फलस्वरूप को मारने की इच्छा से उसने एक दूत को समझाकर प्रजापति राजा के पास भेजा । हे राजन् | तुम्हारे दोनों पुत्रों को अश्वग्रीव राजा के पास भेजो। हमाया राज्य देगा । प्रत्युत्तर में प्रजापति राजा ने कहा - हे सुन्दर दुत ! हमारे कुमारों की क्या जरूरत है— मैं स्वयं ही स्वामी के पास आऊ गा । दुत ने फिर कहा यदि तुम कुमारों को नहीं भेजते हो तो युद्ध करने की तैयारी करो । Jain Education International - चउप्पण० पृ० १०२ कपटपूर्वक उन दोनों भाइयों वह दूत वहां जाकर बोलास्वामी दोनों को अलग-अलग For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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