SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६६ वर्धमान जीवन-कोश को एस ? तेहिं भणियं-जहा आसग्गीवरण्णो दूओ, ते भणंति-जाहे त वच्चेन्जा ताहे कहेज्जह, सो राइणा पूएऊण विसज्जिओ, पधाविओ अप्पणोविसयस्स, कहियं कुमाराणं, तेहिं गंतूण अद्धप्पहे हओ, तस्स जे सहाया ते सव्वेवि दसोदिसि पलाया, रण्णा, सूर्य-जहा आहरिसिओ दूओ, संभंतेणं नियत्तिओ, ताहेरण्णा बिउणतिउणं दाऊण मा हु रण्णो साहिज्जसु जं कुमारेहिं कयं, तेण भणियं-न साहेमि, ताहे जे ते पुरओ गया तेहिं सिह जहा आधरिसिओ दूओ, ताहे सो राया कुविओ, तेण दूएण नायं-जहा रन्नो पुव्वं कहिएल्लयं, जहावत्तं सिंह, ततो अस्सग्गीवेण अन्नो दूओ पेसिओ वच्च पयावइ गंतूण भणाहि-मम सालिं रक्खाहि कसिज्जमाणं, गओ दूओ, रन्ना कुमारा उबलद्धा- किह अकाले मच्चू खवलिओ ? तेण अम्ह अवारएचेव जत्ता आणत्ता, राजा पहाविओ, ते भणंति-अम्हे वच्चामो, ते रुभंता मड्डाए गता, गंतूणं खेत्तए भणंति-किह अन्ने रायाणो रक्खियाइया ? ते भणंति-आसहत्थिरहपुरिसपागारं काऊणं, केच्चिरं ?, जाव करिसणं पविट्ठ, तिवट्ठ, भणति-को एच्चिरमच्छइ ? मम तं पएसं दरिसेह, तेहिं कहियं-एयाए गुहाए, ताहे कुमारो रहेण तं गुह पविठ्ठो, लोगेण दोहिवि पासेहिं कलयलो कओ, सीहोऽविय असंभंतो निग्गओ, कुमारो चिंतेइ-एसपादेहिं अहरण विसरिसं जुद्धं, असिखेडगहत्थो रहाओ उइन्नो, ताहपुणोऽविचितेइ-एस दाढाणखायुधो अहम सिखेडगेण, एवमवि असमंजसं तंपिऽणेण असिखेडगं छड्डियं, सीहस्स अमरिसो जाओ-एगंता ता रहेण गुहमतिगतो एगागो, बितियं भूमि ओइण्णो, ततियं आयुधाणि विमुक्काणि, अज्जणं विणिवाएमित्ति महया, अवतालिएणं वयणे उक्कदं काऊण संपत्तो, ताहे कुमारेण एगेण xxx । -आव० निगा ४४५-मलय टीका में उद्धृत विशाखनन्दी का जीव अनेक भवों में परिभ्रमण कर तुगगिरि में केशरी सिंह हुआ। वह शंखपुर के प्रदेश में उपद्रव करने लगा। __ उस समय अश्वग्रीव नामक प्रतिवासुदेव एक निमित्तज्ञ को कि पूछा---''मेरी मृत्यु किसके द्वारा होगी। प्रत्युत्तर में निमितज्ञ ने कहा-जो तुम्हारे चंडवेग नामक दुत पर गुस्सा करेगा और तुगगिरि पर स्थित केशरी सिंह को एक लीला मात्र में हनन करेगा वह आपको मारने वाला होगा। इसके बाद अश्वग्रीव राजा शंखपुर में शाली के क्षेत्रों को तैयार करवाया और उसकी रक्षार्थ स्वयं के अधीनस्थ राजाओं को क्रमशः रहने की आज्ञा की। एक समय किसी से सुना कि प्रजापति राजा के दो पुत्र बड़े पराक्रमी है। इस कारण किसी प्रकार के स्वाथ के लिए उसके पास उन्होंने स्वयं के चंडवेग दूत को भेजा। राजा प्रजापति स्वय' की सभा में बैठकर संगीत कराता था। वहां स्वयं के स्वामी के बल से उन्मत्त हुआ चंडवेग दूत अकस्मात आकर पहुंचा। जिस प्रकार आगमन का अध्ययन करते हुए-अकाल में बिजली होती है और विधन उत्पन्न हो जाता है उसी प्रकार वह संगीत में विध्नभूत हुआ और तत्काल राजा खड़ा हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy