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________________ पुद्गल - कोश ६६१ सम्बन्धी फुटकर पाठ विद्वानों को पढ़ने और समझने योग्य हैं । सारांश यह कि लेश्या परिणामों का विस्तृत विवेचन जानना हो तो यह ग्रन्थ बहुत उपयोगी है । -श्वेताम्बर जन जनवरी १९६९ - प्रस्तुत लेश्या कोश - लेश्याओं के सम्बन्ध में श्वेताम्बर जैन आगमों के अनुसार संकलित एक बहुत बड़ा संग्रह है । लेश्या मागंणा के सम्बन्ध में दिगम्बर जैन आगम व श्वेताम्बर जैन आगम दोनों में आचार्यों ने बहुत विस्तार से विवेचन किये हैं । प्रतीत होता है - कि सम्पादकों ने जितना भी लेश्या के सम्बन्ध में श्वेताम्बर साहित्य उपलब्ध हो सका सब का आलोडन कर इसके सम्पादक में बड़ा ही परिश्रम किया हैं । इस लेश्या कोश के प्रकाशन में लाने का उद्देश्य जिनागम के अलगअलग विषयों पर शोध करनेवाले विद्वानों के लिये एक जगह उस सामग्री का संग्रह कर उन्हें सुविधा देना है | किन्तु इस प्रकार के ग्रन्थों के सम्पादन से केवल रिसर्च करने वालों को ही नहीं अपितु स्वाध्याय करने वालों के लिये भी बहुत लाभप्रद होगा - ऐसा मेरा विश्वास है ।' इसी प्रकार जिनागम में आये सिद्धान्तों का अलग-अलग स्वतन्त्र रूप में संकलित कर प्रकाश में लाने के प्रयास में लेश्या कोश- प्रकाशकों का प्रथम प्रयास है - ऐसा विद्वान सम्पादकों ने ग्रन्थ की भूमिका में व्यक्त किया है | यद्यपि इस लेश्या कोश के सम्पाबन में, सर्वार्थ सिद्धि, तत्वार्थ राजवार्तिक, तत्वार्थश्लोकवार्तिक, गोम्मटसार जीवकाण्ड व कर्मकाण्ड आदि दिगम्बर ग्रन्थों का भी उपयोग हुआ है - पुनरपि - यह समस्त ग्रन्थ श्वेताम्बर आगम में आये लेश्या - विवरण का हो पथ प्रदर्शन करता है । दिगम्बर जैन आगम के अनुसार लेश्या के सम्बन्ध में एक संकलन जब तक प्रकाश में न आवे तब तक रिसर्च करने वालों के लिये भी यह कोश अपूर्ण ही रहेगा। सम्पादकों की अभिलाषा है दिगम्बर ग्रन्थों से भी लेश्या कोश का सम्पादक कर वे प्रकाशन में लाने वाले हैं । यह उनका प्रयत्न और अभिलाषा अभिनन्दनीय है । वैसे दिगम्बर शास्त्रों में श्वेताम्बर ग्रन्थों में लेश्या के सम्बन्ध में समानता, भिन्नता और विविधता देखी जाती है - ऐसा प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादकों का भी लिखना है । यह विविधता, समानता और भिन्नता बिना दोनों आगमों के अध्ययन से ही ज्ञात हो सकती है । जैसे श्वेताम्बर ग्रन्थों में तपोलब्धि से भी तेजोलेश्या उत्पन्न होती है - उसका निम्न प्रकार वर्णन आता है । विशिष्ट तपस्या करने से बालतपस्वी, अनगार तपस्वी आदि को तेजोलेश्या रूप तेजोलब्धि की प्राप्ति होती है । देवताओं में भी तेजोलेश्या लब्धि होती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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