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________________ पुद्गल-कोश ६५९ अर्थात् "प्रतिक्रमण करने वाला यह प्रतिज्ञा करता है कि 'यदि संयम में किसी प्रकार का अतिचार लगा हो तो उसका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। प्रतिकूल लेश्या में यदि वर्तना की हो तो मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि फिर उसका सेवन नहीं करूंगा।" किन्तु जब तक भिक्षु को छः लेश्याओं का स्वरूप और उसके परिणाम नहीं ज्ञात हों, और प्रतिक्रमणकारी जब तक प्रतिकूल-अनुकूल लेश्याओं का विवेचन न प्राप्त कर ले, तब तक सम्यक् आचरण कैसे सम्भव है ? लेश्या का व्यापक अर्थ है-पुद्गल द्रव्य के संयोग से होने वाले जीव के परिणाम । भगवती सूत्र में जीव व अजीव दोनों की आत्म-परिणति के लिए लेश्या शब्द व्यवहृत हुआ है। लेश्या की ग्राह्य-सामग्री के विषय में दार्शनिकों में विवाद रहा है और अनेक ( सामान्यतः ३ ) मान्यताएं प्रचालित रही हैं। बौद्ध ग्रन्थों में भी कहीं पूरण काश्यप के नाम से तो कहीं गोशालक के नाम से छः अभिजातियों का निरूपण हुआ है। जैन परम्परा की छः लेश्याएं भाव-भाषा में छः अभिजातियों के साथ बहुत कुछ सामानता रखती हैं। उक्त दृष्टि से यह कोष जहाँ प्रत्येक मुमुक्षु व्यक्ति के लिए उपादेय है, वहाँ दार्शनिक क्षेत्र में भी अपना एक विशिष्ट स्थान रखती है। कोष को कई वर्गों में विभक्त कर लेश्या का शाब्दिक विवेचन, द्रश्य-लेश्याभाव-लेश्या के स्वरूप तथा विशेषताएं, लेश्या और जीव, सलेशी जीव आदि मूक्ष्म विषयों का अनेक उप-विषयों के साथ संक्षिप्त विवेचन किया गया है । पुस्तक में अनेक गम्भीर विषयों को विज्ञजनों के विचारने योग्य कहकर ( सम्भवतः विस्तार-भय से ) बिना विवेचना के छोड़ दिया है। जैसे-ध्यान का लेश्या-परिणमन के साथ क्या सीधा संयोग है या योग के द्वारा ? आदि-आदि। फिर भी, संपादक द्वय का प्रयास अत्यंत स्तुत्य है। हम आशा करते हैं कि वे इस कोष की तरह ही जैन-विषय-कोष-ग्रन्थमाला के प्रकाशन की अपनी दीर्घकालीम योजना के अन्तर्गत जैन दर्शन के अन्य विषय से भी सम्बन्धित कोश तैयार कर साहित्य श्री की वृद्धि करेंगे। ___अंत में, हम सम्पादक द्वय को इस पुस्तक में दशमलव वर्गीकरण जैसी वैज्ञानिक पद्धति अपनाने के लिए धन्यवाद देते हैं। - दामोदर शास्त्री, एम० ए०, आचार्य (विश्व ज्योति, दिसम्बर १९६८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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