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________________ ६४६ पुद्गल-कोश द्रव्य से गलित व वियुक्त होते हैं और अपने संयोग से द्रव्य को पुष्ट करते हैं, वे पुद्गल है । (ग) पूरणाद्गलनाच्च शरीरादीनां पुद्गलः । जिसके शरीर आदि बनते हैं और बिखरते रहते हैं वह पुद्गल है । पुद्गल और दंडक के जीव नेरइया णं पंचवन्ने पंचर से पोग्गले बंधेसु वा बंधंति वा बंधिस्संति वा, तं जहा - किण्हा जाव सुक्किल्ला तित्तं जाव मधुरे, एवं जाव वेमाणिता । - ठाण० स्था ५ । उ ३ सू २२८, २२९ - भटी० पृ० १४३२ नैरयिकों ने पांच वर्ण तथा पांच रस वाले पुद्गलों का बंधन ( कर्म रूप से स्वीकरण ) किया है, कर रहे हैं तथा करेंगे । १ कृष्णवर्ण वाले, २ नीलवर्ण वाले, ३ लोहितवर्ण वाले, ४ हारिद्रवणं वाले तथा ५ शुक्लवर्ण वाले । १ तिक्तरस वाले, २ कटुरस वाले, ३ कषायरस वाले, ४ अम्लरस वाले और ५ भधुररस वाले । इसी प्रकार वैमानिकों तक के सारे ही दंडक जीवों ने पांच वर्ण तथा पांच रस वाले पुद्गलों का बंधन ( कर्म रूप में स्वीकरण ) किया है, कर रहे हैं तथा करेंगे । शरीर के वर्णादि रइयाणं सरोरगा पंचवन्ना पंचरसा पन्नत्ता, तंजहा - किण्हा जाव सुकिल्ला, तित्ता जाव मधुरा, एवं निरंतरं जाव वेमाणियाणं । पंच सरीरया पन्नत्ता, तंजहा -ओरालिते, वेउव्विते आहारते, तेयते कम्मते, ओदालितसरीरे पंचवन्ने पंचर से पद्मत्त, तजहा - किन्हे नाव सुक्किले तित्ते जाव महुरे, एवं जाव कम्मगसरीरे, सव्वेवि णं बादरवोंदिधरा कलेवरा पंचवण्णा, पंचरसा, दुगंधा, अट्ठफासा । - ठाण० स्था ५ । उ १ सू २३, २४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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